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84... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
मन व्यापार का निरोध होता है, आत्म विश्वास में अभिवृद्धि तथा आभ्यन्तर व्यक्तित्व विकासोन्मुख होता है। साथ ही शरीर और मन स्वस्थ रहने से अतिचारों की पूर्ण विशुद्धि हो जाती है।
9. सामाइयवय जुत्तो, भयवंदसण्ण भद्दो एवं सव्वस्सवि सूत्र - ये तीनों पाठ दाहिने हाथ को मुट्ठी रूप बनाकर उसे भूमि पर रखते हुए प्रणिपात मुद्रा में बोले जाते हैं, क्योंकि मुट्ठी वीरता की सूचक है। उक्त तीनों सूत्र 'मिच्छामि दुक्कडं' से सम्बन्धित होने के कारण इन सूत्रों के द्वारा कृत अपराधों से मुक्त हुआ जाता है। साहसी एवं पराक्रमी पुरुष ही दोषों को स्वीकार एवं उनका परिहार कर सकता है अतः उपर्युक्त सूत्र पाठ अमुक मुद्रा में ही बोले जाते हैं।
10. जयउसामिय, जगचिंतामणि, जं किंचि, नमुत्थुणं, उवसग्गहरं, चउक्कसाय, जयतिहुअण, सकलार्हत्, अजितशांति आदि- ये सूत्र योग मुद्रा (चैत्यवंदन मुद्रा) में बोले जाते हैं। क्योंकि इस मुद्रा से मानसिक प्रसन्नता और आन्तरिक उल्लास का भाव पैदा होता है जो कि परमात्मा की स्तुति करते वक्त होना जरूरी है। हर्ष एवं उत्साह पूर्वक की गई स्तुति पूर्णतः सार्थक होती है। इस मुद्रा से वीर्य ऊर्ध्वरेतस् और ब्रह्मचर्य का नैष्ठिक पालन होता है। घुटने, पैर एवं पंजों का दर्द दूर होकर प्रमाद दशा कम होती है तथा अन्त: स्रावी ग्रन्थियाँ कार्यक्षम बनती हैं।
11. जावंति चेइआई, जावंत केविसाहू एवं जयवीयराय सूत्र- ये सूत्र मुक्ताशुक्ति मुद्रा में बोले जाते हैं। इन सूत्रों के माध्यम से तीन लोक के चैत्यों और सर्व साधुओं को वन्दन किया जाता है तथा स्वयं के लिए श्रेष्ठ प्रार्थना की जाती है। इस तरह की धर्म क्रिया के लिए शरीर एवं मन का स्वस्थ होना जरूरी है जो मुक्ताशुक्ति मुद्रा से ही पूर्ण सम्भव है।
इस मुद्रा प्रयोग से प्राणों की ऊर्ध्वगति होती है, वीर्य नाड़ी के दोष दूर होते हैं तथा कण्ठ मधुर बनता है। इससे योग मुद्रा के लाभ भी प्राप्त होते हैं। 12. नमोऽर्हत् सूत्र - यह सूत्र बैठे हुए योग मुद्रा में तथा खड़े हुए सामान्य में बोला जाता है।
मुद्रा
13. कल्लाण कंदं स्तुति - इस पाठ की चारों स्तुतियाँ खड़े होकर सामान्य मुद्रा में कही जाती है। स्तुति के समय एक जन मुख के आगे