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________________ प्रतिक्रमण के गूढ़ रहस्यों का विविध पक्षीय अनुसंधान ... 71 मिला। रात्रिभर शारीरिक संज्ञा की निवृत्ति, ध्यान आदि के लिए मुनियों का आवागमन चलता रहा, मेघ मुनि को पल भर भी निद्रा न आई। विचार बदला और प्रात: होते ही रजोहरण आदि उपकरण भगवान महावीर को संभलाने गये। प्रभु के मुख से पूर्व जन्म की घटना सुनकर जातिस्मरण ज्ञान हो गया और फिर से महाव्रतों में स्थिर बने। इस प्रकार अव्रत का प्रतिक्रमण किया। भगवान महावीर के शासनकाल में आनन्द श्रावक ने भिक्षार्थ पधारे हुए गौतम गणधर के चरणों में वन्दन कर पूछा- हे भगवन्! श्रावक को अवधिज्ञान हो सकता है? हाँ! हो सकता है। भगवन् मुझे भी इतने इतने क्षेत्र परिमाण वाला अवधिज्ञान हुआ है। गौतम स्वामी ने उपयोग लगाये बिना कह दिया कि गृहस्थ को इतना विस्तृत अवधिज्ञान नहीं हो सकता। परमात्मा महावीर के समक्ष आलोचना करते हुए उनके मुखारविन्द से यथार्थ ज्ञान हुआ, तब बेले का पारणा किये बिना ही पुनः आनन्द श्रावक से क्षमायाचना करने पहुँचे और प्रमाद का प्रतिक्रमण करने के पश्चात पारणा किया। प्रथम तीर्थंकर प्रभु आदिनाथ के पुत्र बाहुबली ने संयम जीवन स्वीकार किया। उनसे पहले उनके 98 भाई दीक्षित हो चुके थे। 'मैं उम्र में बड़ा हूँ किन्तु वे मुझसे पूर्व प्रव्रजित हुए हैं। यदि आदिनाथ भगवान के चरणों में जाता हूँ तो लघु भ्राताओं को वन्दन करना पड़ेगा।' इस मान कषाय वश बाहुबली एक वर्ष तक कठोर साधना करते रहे । अन्ततः दीक्षित बहिनें ब्राह्मी और सुन्दरी ने उन्हें सचेत किया। उनके अहंकार रूपी मद का विलय हुआ और ज्योंहि आगे बढ़ने के लिए कदम उठाया त्योंही कषाय का प्रतिक्रमण होने से केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। प्रसन्नचन्द्र राजर्षि ने अशुभ योग का प्रतिक्रमण किया था। वे दीक्षित बन एक पैर पर खड़े होकर एवं सूर्य के सम्मुख दृष्टि रखकर ध्यान कर रहे थे। मगधाधिपति श्रेणिक ने देखा, उन्हें विनय पूर्वक नमन किया। फिर भगवान महावीर के चरणों में पहुँचे । भगवान को सविनय वन्दन कर पूछा- हे भगवन्! नगरी के बाहर जो मुनि ध्यान में खड़े हैं, अभी आयु पूर्ण करें तो कौनसी गति में जायें? प्रभु ने कहा- सातवीं नरक में। श्रेणिक चकित हो गये। कुछ देर बाद फिर पूछा तो उत्तर मिला- छठीं, पाँचवीं, चौथी... सुनते-सुनते केवलज्ञान की दुंदुभियाँ बजने लगी। श्रेणिक ने पूछा- इतना अन्तर क्यों ? प्रभु बोले- तुमने
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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