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70... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना अर्थपिण्ड कहा है तो छह आवश्यक सहित सम्पूर्ण प्रतिक्रमण का महत्त्व नि:सन्देह बहुत अधिक है।
जिसे प्रतिक्रमणसूत्र याद हैं1. वह पंच परमेष्ठी के स्वरूप और उनके गुणों का ज्ञाता हो जाता है। 2. छह आवश्यक विधि एवं उसके तथ्यों का जानकार हो जाता है। 3. वह अठारह पापस्थानों का स्वरूप समझ लेता है। 4. उसे प्रत्याख्यान पाठ याद हो जाते हैं, जिससे वह स्वयं प्रत्याख्यान पूर्वक
कोई नियम ले सकता है और गुरु आदि के अभाव में दूसरों को भी
प्रत्याख्यान करवा सकता है। 5. प्रतिक्रमण का मूल पाठ वंदित्तुसूत्र याद होने से श्रावक के बारह व्रत
(पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत एवं चार शिक्षाव्रत) का विशिष्ट ज्ञाता हो
जाता है। 6. बारहव्रत के स्वरूप की समग्र जानकारी होने से उनमें लगने वाले दोषों
का भी परिज्ञाता हो जाता है। इससे वह कृतदोषों से शीघ्र मुक्त हो
सकता है। 7. प्रतिक्रमण याद करने से आवश्यकसूत्र नाम का एक आगम कण्ठस्थ हो
जाता है। 8. यदि अर्थ समझते हुए मूल पाठ याद किए जाएं तो छह आवश्यक रूप
प्रतिक्रमण की आराधना समग्र रूप से सार्थक बन सकती है।47 किसने-कौनसा प्रतिक्रमण किया?
आचार्य आषाढ़ाभूति ने मिथ्यात्व का प्रतिक्रमण किया था। एकदा आषाढ़भूति ने अंतिम समय में अपने शिष्यों को संलेखना करवायी और कहायदि देवगति को प्राप्त करो तो मुझे सूचित करना। उन शिष्यों ने गुरू वचन को विस्मृत कर दिया। इधर आषाढ़ाभूति की श्रद्धा विचलित हो गई। जिसके फलस्वरूप उन्होंने गृहस्थवास स्वीकार कर लिया। देव गति को प्राप्त हुए शिष्यों ने आकर सचेत किया। तो फिर से आषाढ़भूति की श्रद्धा दृढ़ बनी, यह मिथ्यात्व का प्रतिक्रमण हुआ।
श्रेणिक राजा के पुत्र मेघकुमार परमात्मा महावीर की देशना सुनकर प्रव्रजित हुए। दीक्षा के पहले दिन ही सोने का स्थान आने-जाने के द्वार पर