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________________ प्रतिक्रमण के गूढ़ रहस्यों का विविध पक्षीय अनुसंधान ... 69 • प्रतिक्रमण के पाठों में सम्यक्त्व, बारहव्रत एवं ज्ञान आदि पंचाचार के अतिचारों तथा अठारह पापस्थान की आलोचना आदि के पाठ हैं, प्रतिक्रमण द्वारा इन व्रत आदि में लगे दोषों की शुद्धि हो जाती है । • प्रतिक्रमण से पापों का प्रायश्चित्त होने के अतिरिक्त इसमें देववन्दन, गुरुवन्दन, विनय, स्वाध्याय, कायोत्सर्ग, ध्यान आदि धर्म क्रियाएँ भी की जाती है अतः उनके सुफल भी प्राप्त होते हैं। • प्रतिक्रमण में प्रथम सामायिक आवश्यक होता है उसके परिपालन से समभाव की प्राप्ति और अनन्त जीवों के अभयदान का लाभ होता है। इसी तरह प्रतिक्रमण की प्रत्येक क्रिया से अनेक फायदे हैं। • शुभ भावोल्लास के लिए प्रतिक्रमण क्रिया एक अद्भुत साधन है। प्रतिक्रमण में प्रभुभक्ति, गुरुविनय, समभाव, पापों का पश्चात्ताप, जीवदया, क्षमापना, उपशम, स्थिर शुभ ध्यान, संलीनता आदि शुभ भावों को अवकाश मिलता है। • दिन या रात्रि सम्बन्धी दुष्कृत्यों से बंधे हुए पाप समूह का निर्गमन होता है। • पाप कार्यों के प्रति सच्चा तिरस्कार उत्पन्न होता है। • दोनों सन्ध्याओं के लिए धर्म आराधना निश्चित हो जाती है। दुष्कृत्यों के स्मरण और पश्चात्ताप से अच्छे संस्कारों का अंकुरण होता है। • प्रतिक्रमण याद करने के कुछ लाभ प्रतिक्रमण- जैन अनुयायियों का आवश्यक कर्म है । उभय सन्ध्याओं में किया जाने वाला करणीय कर्म है अतः इसके मूल पाठ कण्ठाग्र होना आवश्यक है। प्रबुद्ध विचारकों का मानना है कि जो व्यक्ति प्रतिक्रमण सूत्र कण्ठस्थ कर लेता है, वह जीवन उपयोगी ज्ञानवर्द्धक एवं आगमिक अनेक तथ्यों का जानकार हो जाता है। प्रतिक्रमण के सूत्र पाठ मूलत: प्राकृत में हैं, क्योंकि यह पूर्व काल की मूल भाषा होने से तीर्थंकरों की वाणी इसी भाषा में प्रकट हुई। अत: उनका उच्चारण मंगलकारी माना जाता है। जहाँ नियमित सामायिकप्रतिक्रमण की आराधना होती हो, वहाँ अनेक अशुभ टल जाते हैं। पूर्वाचार्यों ने जहाँ प्रथम सामायिक आवश्यक को ही द्वादशांगी का सार और चौदह पूर्व का
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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