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प्रतिक्रमण के गूढ़ रहस्यों का विविध पक्षीय अनुसंधान ...61 परीक्षण और समीक्षा की व्यवस्थित प्रक्रिया है। भूल होना मानव का स्वभाव है, भूल को उस रूप में स्वीकार करना मानवता है। प्रतिक्रमण भूल को भूल रूप में मानने, जानने एवं छोड़ने का पुरूषार्थ है। मनोविज्ञान की दृष्टि से गलती को गलती रूप में स्वीकार करने पर भविष्य में पुन: गलतियाँ होने की संभावनाएँ कम रहती है। ___यदि प्रतिक्रमण से शारीरिक स्वास्थ्य की तुलना की जाये तो उसके मूल मर्म को नहीं अपनाने वाला अन्तरंग दृष्टि से भयभीत, तनावग्रस्त एवं दुःखी रहता है।
स्वस्थ का अर्थ है- स्व में स्थित होना, स्वयं पर स्वयं का नियंत्रण। स्वास्थ्य का अर्थ है- रोगमुक्त जीवन। स्वास्थ्य तन, मन और आत्मोत्साह के समन्वय का नाम है। यदि शरीर, मन और आत्मा तीनों सम्मिलित रूप से कार्य करें, शरीर की सारी प्रणालियाँ एवं सभी अवयव सामान्य रूप से स्वतंत्रता पूर्वक कार्य करें, तब व्यक्ति स्वस्थ रहता है।
जैन परम्परा के स्वरूपज्ञ चंचलमलजी चोरडिया के अनुसार आत्मा की अभिव्यक्ति के तीन सशक्त माध्यम हैं- मन, वचन और काया। आत्मा ही जीवन का आधार है। आत्मा की अनुपस्थिति में शरीर, मन और मस्तिष्क का कोई अस्तित्व नहीं होता और न स्वास्थ्य की कोई समस्या होती है। आत्मा के विकार ही रोग के प्रमुख कारण होते हैं। आत्म विकार के निर्गमित होने पर शरीर, मन, वाणी और मस्तिष्क स्वत: स्वस्थ होने लगते हैं। प्रतिक्रमण आत्म विकार के निरसन का सबल साधन है
यह महत्त्वपूर्ण उल्लेख है कि आदमी जितने कष्ट भोगता है वस्तुत: दुनियाँ में उतने कष्ट नहीं है। वह स्वयं के अज्ञानवश कष्टों को भोगता है। ज्ञानी के लिए शरीर में, प्रकृति में, वातावरण में, वनस्पति जगत में, सम्यक् जीवन शैली में सब जगह समाधान है। किन्तु उस व्यक्ति को कहीं समाधान नहीं मिलता, जिसमें अज्ञान भरा हो। प्रतिक्रमण अज्ञान को दूर करने में सहायक है।40
छह आवश्यक की दृष्टि से- यहाँ विवेच्य यह है कि प्रतिक्रमण और स्वास्थ्य का घनिष्ट सम्बन्ध है। प्रतिक्रमण करते समय उसमें आवश्यकों का भी समावेश हो जाता है क्योंकि प्रतिक्रमण छ: आवश्यक रूप ही होता है। यदि एक भी आवश्यक कम हो, तो प्रतिक्रमण अधूरा कहलाता है। अत: षडावश्यकों के