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________________ 42... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना की है और संकल्प बल भी पैदा नहीं किया है, वह यदि प्रत्याख्यान कर भी ले तो भी उसका समुचित निर्वाह नहीं कर सकता। प्रत्याख्यान सबसे ऊपर की 'आवश्यक क्रिया' है। उसके लिये विशिष्ट चित्त शुद्धि आवश्यक है, जो कायोत्सर्ग के बिना पैदा नहीं हो सकती। इसी अभिप्राय से कायोत्सर्ग के पश्चात प्रत्याख्यान आवश्यक रखा गया है। षडावश्यक की क्रमिकता के कुछ रहस्य और भी कहे जा सकते हैं जैसे कि समभाव की प्राप्ति होना 'सामायिक' है। ममत्व बुद्धि के कारण आत्मा अनादिकाल से चतुर्गति रूप संसार में परिभ्रमण कर रही है। ऐसी आत्मा को समभाव में स्थिर करने के लिए सावद्य योगों से निवृत्ति आवश्यक है, जो कि सामायिक से सम्भव है। सरल शब्दों में सामायिक का निर्वचन है- आत्म स्वरूप में रमण करना। सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान, सम्यकचारित्र और सम्यकतप में तल्लीन होना । सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान, सम्यकचारित्र और सम्यकतप ही मोक्षमार्ग है। मोक्षमार्ग में सामायिक मुख्य है यह बताने के लिए भी सामायिक आवश्यक को सबसे प्रथम रखा गया है। दूसरी दृष्टि से आत्मोत्थान के लिए सामायिक मुख्य प्रयोग है। साथ ही समस्त धार्मिक क्रियाओं के लिए भी आधारभूत होने से सामायिक को प्रथमं स्थान दिया गया है। तीसरा कारण है कि सामायिक की साधना उत्कृष्ट है। अतः सामायिक के बिना आत्मा का पूर्ण विकास असंभव है। सभी धार्मिक साधनाओं के मूल में सामायिक रही हुई है। अतः समता भाव की दृष्टि से ही सामायिक आवश्यक को प्रथम स्थान प्राप्त है।10 सावद्य योग से निवृत्ति प्राप्त करने के लिए एवं जीवन को राग-द्वेष रहित बनाने के लिए साधक को सर्वोत्कृष्ट जीवन जीने वाले महापुरुषों के आलम्बन की आवश्यकता रहती है। इसी उद्देश्य से सामायिक के पश्चात चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक का क्रम रखा गया है। जो व्यक्ति अपने इष्टदेव तीर्थंकर भगवंतों की स्तुति करता है, गुण-स्मरण करता है वही तीर्थंकर भगवान के बताए हुए मार्ग पर चलने वाले, जिनवाणी का उपदेश देने वाले गुरुओं को भक्ति भाव पूर्वक
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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