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________________ 36...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में कोट्याचार्य माना है, जबकि डॉ. मोहनलाल मेहता के अनुसार आचार्य शीलांक का समय विक्रम की नवीं-दसवीं शताब्दी है और कोट्याचार्य का समय विक्रम की आठवीं शती ही सिद्ध होता है। इनकी मान्यता में शीलांकसूरि और कोट्याचार्य को एक ही व्यक्ति मानने का कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं होता।91 ___हारिभद्रीय टीका- आचार्य हरिभद्रसूरि जैन आगमों के प्रथम टीकाकार हैं। यह टीका आवश्यक एवं उसकी नियुक्ति पर लिखी गई है। आचार्य हरिभद्र ने इस टीका में मूल भाष्य गाथाओं की भी व्याख्या की है। उन्होंने नियुक्ति गाथाओं के अनेक पाठान्तरों का उल्लेख किया है। साथ ही अनेक स्थलों पर व्याकरण विमर्श भी प्रस्तुत किया है। इसमें प्राकृत गाथाएँ लगभग चूर्णि से उद्धृत हैं। अन्य जगह भी चूर्णि का अंश उद्धृत किया है। आचार्य हरिभद्रसूरिजी ने टीका प्रयोजन के सम्बन्ध में एक श्लोक प्रस्तुत किया है। उससे ज्ञात होता है कि उन्होंने इस टीका से पूर्व एक बृहद् टीका का निर्माण किया था, जो आज हमारे समक्ष उपलब्ध नहीं है। उसके बाद यह वैदृष्य पूर्ण संक्षिप्त टीका लिखी है। यह टीका 22000 श्लोक परिमाण है। ___मलधारी हेमचन्द्र टीका- यह विशेषावश्यकभाष्य पर ही विस्तृत एवं गंभीर टीका है। इसमें टीकाकार ने सभी विषयों की विस्तृत व्याख्या की है। इस टीका का अपर नाम शिष्यहितावृत्ति भी है। इसमें प्रमुख रूप से सरल-सुबोध भाषा में दार्शनिक मंतव्यों को स्पष्ट किया गया है। इस टीका की विशेषता है कि स्वयं ग्रंथकार ने अनेक प्रश्नों को उठाकर उनका समाधान दिया है। वस्तुत: विशेषावश्यकभाष्य जैसे गंभीर ग्रन्थ को पढ़ने में कुंजी के समान है। इसका ग्रंथाग्र 28000 श्लोक परिमाण है। ___ मलयगिरि टीका- आचार्य मलयगिरि महान टीकाकार के रूप में विश्रुत हैं। उन्होंने कई आगम ग्रंथों पर टीकाएँ रची हैं। इनके द्वारा रचित टीकाओं के अध्ययन से अवगत होता है कि वे केवल आगमों के ही नहीं, अपितु गणित शास्त्र, दर्शन शास्त्र एवं कर्मशास्त्र के भी प्रगाढ़ विद्वान थे। उन्होंने इस टीका में लगभग सभी शब्दों की सटीक एवं संक्षिप्त व्याख्या प्रस्तुत की है। विद्वानों के अनुसार ये आचार्य हेमचन्द्र के समवर्ती थे। यह टीका ग्रन्थ आवश्यक नियुक्ति पर लिखा गया है तथा अनेक रहस्यों का उद्घाटक है। इसमें कथाओं
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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