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________________ आवश्यक का स्वरूप एवं उसके भेद ...33 इन आवश्यकों एवं तद्विषयक सूत्र पाठों का विस्तृत वर्णन यथास्थान करेंगे। इन आगम पाठों के गुरु-गंभीर रहस्यों के उद्घाटन के लिए विविध तरह का व्याख्या साहित्य रचा गया, उस व्याख्या साहित्य को पाँच भागों में विभक्त कर सकते हैं- 1. नियुक्तियाँ 2. भाष्य 3. चूर्णि 4. संस्कृत टीका एवं वृत्ति 5. लोकभाषा में रचित टब्बा | निर्युक्ति- जैन आगम साहित्य पर सर्वप्रथम प्राकृत भाषा में जो पद्य बद्ध टीकाएँ लिखी गई, वे नियुक्तियाँ कही जाती हैं। निर्युक्ति का अर्थ है - शब्द का सही अर्थ प्रकट करना। एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, किन्तु कौनसा अर्थ किस प्रसंग के लिए उपयुक्त है। भगवान महावीर के उपदेश काल में कौन सा शब्द किस अर्थ से सम्बद्ध रहा है, इत्यादि तथ्यों को लक्ष्य में रखते हुए सही दृष्टि से अर्थ निर्णय करना और उस अर्थ का मूल सूत्र के शब्दों के साथ सम्बन्ध स्थापित करना निर्युक्ति का प्रयोजन है। आचार्य भद्रबाहु के अनुसार जिसके द्वारा सूत्र के साथ अर्थ का निर्णय होता है वह निर्युक्ति है। 88 आचार्य जिनदास के मतानुसार सूत्र में निर्युक्त अर्थ की व्याख्या करना नियुक्ति है। 89 कोट्याचार्य के अभिमत से विषय और विषयी के निश्चित अर्थ का सम्बन्ध जोड़ना नियुक्ति है। 90 आचार्य भद्रबाहु प्रमुख नियुक्तिकार माने जाते हैं। भाष्य - नियुक्तियों के गंभीर रहस्यों को प्रकट करने के लिए नियुक्तियों के समान ही प्राकृत भाषा में जो विस्तृत पद्यात्मक व्याख्याएँ लिखी गई, वे भाष्य कहलाती हैं। निर्युक्ति की व्याख्या शैली गूढ़ एवं संक्षिप्त होती है, जबकि भाष्य अपेक्षाकृत विस्तृत होते हैं। भाष्य मूल सूत्रों एवं नियुक्तियों दोनों पर लिखे गये हैं। जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण और संघदासगणी- ये दोनों भाष्यकार के रूप में प्रसिद्ध है। चूर्णि - भाष्यगत तात्त्विक सिद्धान्तों को अथवा विषय को स्पष्टता पूर्वक समझाने के लिए संस्कृत मिश्रित प्राकृत भाषा में जो गद्यात्मक व्याख्याएँ रची गई वे चूर्णि कही जाती हैं। चूर्णिकार के रूप में जिनदासगणि महत्तर का नाम प्रसिद्ध है। टीका- आगमिक अथवा चूर्णिगत विषयों को अत्यन्त सुगमतापूर्वक प्रस्तुत करने के लिए जो संस्कृत भाषा में गद्यात्मक व्याख्याएँ लिखी गई, वे टीका या वृत्ति कही जाती हैं। आचार्यों ने टीका के लिए विविध नामों का प्रयोग किया है जैसे- टीका, वृत्ति, निवृत्ति, विवरण, विवेचन, व्याख्या, वार्तिक,
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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