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________________ आवश्यक का स्वरूप एवं उसके भेद ...23 कल्प अनिवार्य और छह कल्प वैकल्पिक होते हैं।70 प्रतिक्रमण नामक आठवाँ कल्प प्रथम एवं अन्तिम तीर्थंकर के शासनकाल में अनिवार्य रूप से होता है। प्रभु ऋषभदेव के समय प्रतिदिन प्रतिक्रमण आवश्यक होता था, किन्तु मध्य के बाईस तीर्थंकरों के साधु-साध्वी दोष लगने पर ही आवश्यक करते हैं तथा अन्तिम तीर्थंकर प्रभु महावीर के शासनकाल में प्रथम तीर्थंकर के समान ही दोष लगे या नहीं, नित्यप्रति आवश्यक क्रिया (प्रतिक्रमण) करने का उत्सर्ग विधान है। इस उल्लेख से यह तो स्पष्ट है कि आवश्यक की परम्परा प्राचीनतम है, लेकिन इसका स्वरूप बदलता रहा है। वर्तमान में आवश्यक क्रिया के जो सूत्रपाठ मिलते हैं उनमें भिन्न-भिन्न परम्पराओं में काफी अन्तर है। आवश्यक की प्रायोगिक एवं सूत्रपाठ सम्बन्धी विधि में भी मंदिरमार्गी, स्थानकवासी, तेरापंथी और दिगम्बर परम्परा में बहुत अंतर आ गया है। वर्तमान में उपलब्ध सूत्र पाठों में कितना मूल है और कितना प्रक्षेपित है? इसका निर्धारण नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु द्वारा की गई सूत्र पाठों की व्याख्या के आधार पर किया जा सकता है। ___ नियुक्ति की व्याख्या के अनुसार कुछ परम्पराओं में प्रतिक्रमण से पूर्व किए जाने वाले चैत्यवंदन आदि तथा छह आवश्यक के अनन्तर णमुत्थुणं सूत्र के पश्चात बोले जाने वाले स्तवन, स्तोत्र, सज्झाय आदि आवश्यक के मूल पाठ नहीं है, इनका बाद में प्रक्षेपण किया गया है, क्योंकि गुजराती, अपभ्रंश, राजस्थानी या हिन्दी का पाठ मौलिक नहीं माना जा सकता, ऐसा समणी कुसुमप्रज्ञाजी का अभिमत सर्वथा उपयुक्त है। आवश्यक सूत्र में केवल प्राकृत निबद्ध पाठों के ही उल्लेख हैं।71 यहाँ प्रसंगवश यह ज्ञात कर लेना भी आवश्यक है कि जो धर्मनिष्ठ प्राकृत पाठों को न समझ पाने के कारण उन्हें हिन्दी भाषा में लिपिबद्ध करने का आग्रह रखते हैं, वह अनुचित है। कई लोग हमारे समक्ष यह समस्या दर्शाते हुए प्रस्ताव रखते हैं कि हम प्रतिक्रमण तो अवश्य करते हैं, किन्तु कौनसा पाठ क्यों और किसलिए बोला जा रहा है? यह समझ नहीं आता है और सूत्रार्थ के अभाव में की जा रही क्रिया भी यथार्थ नहीं हो पाती, अत: इन्हें हिन्दी भाषा में रूपान्तरित कर दिया जाए तो आम जनता के लिए श्रेयस्कारी होगा।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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