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________________ 22...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में सद्भाव, समदृष्टि, गुणानुराग, विनम्रता आदि गुणों का सर्जन करने हेतु षडावश्यक एक महत्त्वपूर्ण चरण है। साम्प्रदायिक वैमनस्य, संघीय मतभेद, इन्द्रिय असंयम, स्वप्रशंसा एवं परनिंदा का बढ़ती वृत्ति, मन-वचन-काया का अनियंत्रण, बढ़ती अराजकता आदि में 'सर्वजनहिताय सर्वजन सुखाय' की भावना आदि के द्वारा इनका निदान किया जा सकता है। इसी प्रकार राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में भी षडावश्यक का महत्त्वपूर्ण स्थान हो सकता है। यदि प्रबन्धन के क्षेत्र में षडावश्यक की भूमिका पर विचार किया जाए तो इसकी साधना के द्वारा जीवन प्रबन्धन, तनाव प्रबंधन, समाज प्रबंधन, कषाय प्रबंधन आदि में सहयोग प्राप्त हो सकता है। सामायिक की साधना व्यक्ति में समता का विकास कर उसे सहिष्णु बनाती है जिससे मन में कषाय उत्पन्न नहीं होते और कषाय रहित अवस्था में तनाव उत्पत्ति के लिए अवकाश ही नहीं रहता अत: सहज ही कषाय एवं तनाव प्रबंधन में सहयोग प्राप्त होता है। वंदन एवं चतुर्विंशतिस्तव की आवश्यकता समाज एवं समूह प्रबंधन में आवश्यक है। इसके द्वारा Generation gap को दूर करते हुए छोटों के मन में बड़ों के प्रति आदर तथा बड़ों में छोटों के प्रति स्नेह एवं प्रोत्साहन भाव की वृत्ति का विकास करते हैं। इसी प्रकार कायोत्सर्ग के द्वारा मानसिक एवं कायिक चेष्टाओं पर नियंत्रण प्राप्त कर उन्हें संतुलित एवं स्वनियंत्रित किया जा सकता है। प्रत्याख्यान के माध्यम से आवश्यकता एवं इच्छा में भेद करते हुए भोगवृत्ति को सीमित तथा सामान्य जन जीवन की समस्याओं का समाधान करते हुए सामाजिक व्यवस्था का नियमन किया जा सकता है। षडावश्यक क्रियाओं में पाठ-भेद एवं विधि-भेद क्यों? जैन श्रमण-श्रमणियों के लिए कई प्रकार की आचार-मर्यादाओं का प्रावधान है, उनमें दस कल्प भी एक आवश्यक आचार माना गया है। अचेलक, औद्देशिक वर्जन, शय्यातरपिण्ड वर्जन, राजपिण्ड परिहार, कृतिकर्म, व्रत, ज्येष्ठ, प्रतिक्रमण, मासकल्प और पर्युषणाकल्प- ये दस कल्प प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के साधु-साध्वियों के लिए अनिवार्य होते हैं, जबकि मध्यवर्ती बाईस तीर्थंकरों के साधुओं के तथा महाविदेह क्षेत्र के साधुओं के इनमें से चार
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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