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________________ 16...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में इस प्रकार ज्ञात होता है कि सभी आवश्यक परस्पर में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं तथा आवश्यक का यह क्रम मौलिक एवं मनोवैज्ञानिक है। आवश्यकों की उपादेयता षडावश्यकों की उपयोगिता क्या हो सकती है? इस सम्बन्ध में विचार करते हुए अनुयोगद्वारसूत्र एवं उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि प्रथम सामायिक आवश्यक के द्वारा दीर्घकालीन अशुभ प्रवृत्तियों से दूर रहकर समता पूर्वक जीवन जीने का संकल्प किया जाता है, इससे जीव सावध योगों से विरति को प्राप्त होता है।61 जिस प्रकार पश को कील (खंटे) से बाँध देने पर उसके भागने का भय नहीं रहता है उसी प्रकार चित्त को सामायिक के खंटे से प्रतिबंधित कर देने पर उसे विकारोन्मुख या विषयोन्मुख होने का अवसर प्राप्त नहीं होता है। सामायिक का प्रयोजन मात्र दैहिक प्रवृत्तियों का निरोध करना ही नहीं है, अपितु प्रमुख रूप से मानसिक, दुर्विचारों एवं आत्ममल का विशोधन करना है। हमारी पतनोन्मुख स्थिति का मुख्य आधार मन है, सामायिक के द्वारा उसे निर्विकल्प बनाने का अभ्यास किया जाता है। परिणामत: वैयक्तिक साधना आत्मोपलब्धि के श्रेष्ठ सोपानों की ओर निरन्तर अग्रसर बनी रहती है।62 दूसरे चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक में सर्वोच्चदशा में अवस्थित तीर्थंकर के गुणों का संस्तवन किया जाता है इससे मिथ्यात्व रूपी अंधकार का विलय और अंत:करण की निर्मलता रूप दर्शन विशोधि की प्राप्ति होती है। इस प्रकार वीतराग की स्तुति करने वाला मिथ्यात्व से सम्यक्त्व की ओर उन्मुख होता है।63 तीसरे वन्दन आवश्यक के पालन द्वारा विनय गुण की उत्पत्ति होती है। शास्त्रों में विनय को धर्म का मूल बताया है- 'विणय मूलो धम्मो।' गुण युक्त गुरुजनों को विनम्र भावपूर्वक वन्दन करने से नीच गोत्रकर्म का क्षय, उच्च गोत्रकर्म का बन्ध, अप्रतिहत सौभाग्य की प्राप्ति और अबाधित आज्ञा के फल की प्राप्ति होती है। ऐसी पुण्य प्रकृति के उपार्जन से सबके मन में अपने प्रति अनुकूलता का भाव पैदा होता है।64 चौथे प्रतिक्रमण आवश्यक के द्वारा कृत दोषों की आलोचना एवं व्रतों में लगे हुए अतिचारों की शुद्धि की जाती है इससे प्रमाद दशा मन्द पड़ती है। उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार प्रतिक्रमण करने वाला जीव व्रतों के छिद्रों को बंद
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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