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10...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में अपेक्षा भावी पर्याय को ध्यान में रखकर उपचार से उसमें द्रव्य आवश्यकता स्वीकार की जाती है।40
ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य आवश्यक- अनुयोगद्वार सूत्र में ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य आवश्यक तीन प्रकार का बतलाया गया है(i) लौकिक (ii) कुप्रावचनिक और (iii) लोकोत्तर।41
लौकिक द्रव्य आवश्यक- संसारी जीवों के द्वारा जो कृत्य अवश्य करने योग्य हैं वे सब लौकिक द्रव्य आवश्यक है जैसे- उषाकाल होने पर राजा, युवराज, सार्थवाह आदि का मुख धोना, दंत प्रक्षालन करना, तेल मालिश करना, स्नान करना, कंघी आदि से केशों को संवारना, दर्पण में मुख देखना, धूप जलाना, स्वच्छ वस्त्र पहनना आदि कार्य करते हैं और इन लौकिक आवश्यक क्रियाओं को सम्पन्न कर राजसभा, देवालय, उद्यान आदि की ओर जाते हैं, व्यापार में प्रवृत्त होते हैं, वह लौकिक द्रव्य आवश्यक है।42
टीकाकार हेमचन्द्राचार्य के निर्देशानुसार यहाँ दंतप्रक्षालन आदि लौकिक आवश्यक कृत्यों में 'द्रव्य' शब्द का प्रयोग मोक्ष प्राप्ति के कारणभूत आवश्यक की अप्रधानता की अपेक्षा से किया गया है। मोक्ष का प्रधान कारण तो भाव आवश्यक है, न कि द्रव्य आवश्यक। अतएव 'अप्पाहण्णे वि दव्वसद्दोत्थि' अप्रधान अर्थ में भी द्रव्य शब्द प्रयुक्त होता है- इस शास्त्र वचन के अनुसार अप्रधानभूत आवश्यक द्रव्य आवश्यक है तथा इन दंतधावन आदि कृत्यों में लोक प्रसिद्धि से भी आगमरूपता नहीं है, अतः इनमें आगम (आवश्यक सूत्र के ज्ञान) का अभाव होने से नोआगमता सिद्ध है।43 इस प्रकार नोआगम लौकिक द्रव्य आवश्यक नाम का भेद सुसिद्ध होता है। ___ कुप्रावनिक द्रव्य आवश्यक- अर्हत उपदेश के विपरीत सिद्धान्तों की प्ररूपणा एवं आचरण करने वाले चरक आदि कुप्रावचनिकों के द्वारा जो कृत्य अवश्य किये जाते हैं जैसे- चरक, चीरिक, चर्मखण्डिक, भिक्षाजीवी आदि के द्वारा इन्द्रादिकों की प्रतिमाओं का उपलेपन, संमार्जन आदि आवश्यक कृत्यों के रूप में किये जाते हैं, वह कुप्रावचनिक द्रव्य आवश्यक है।14
यहाँ चरकादि के लिए उपलेपन आदि आवश्यक कृत्य हैं अत: 'आवश्यक' पद दिया है। इन उपलेपनादि क्रियाओं में मोक्ष के कारणभूत भाव आवश्यक की अप्रधानता होने से 'द्रव्यत्व' एवं आगम के सर्वथा अभाव की अपेक्षा 'नोआगम' शब्द का व्यवहार किया जाता है।