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6...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
1. नाम आवश्यक- नाम अभिधान या संज्ञा को कहते हैं। अतएव तदात्मक आवश्यक नाम आवश्यक कहलाता है। नाम आवश्यक में नाम ही आवश्यक रूप होता है अथवा नाम मात्र से जो आवश्यक कहलाये, वह नाम आवश्यक है। सूत्रत: जिस किसी जीव या अजीव का अथवा जीवों या अजीवों का अथवा तदुभयों का लोक व्यवहार चलाने के लिए 'आवश्यक' ऐसा नाम रख लिया जाता है, उसे नाम आवश्यक कहते हैं।
एक जीव में नाम आवश्यक का प्रयोग इस प्रकार जाने- जैसे किसी व्यक्ति ने अपने पुत्र का नाम देवदत्त रखा, वस्तुतः उसे देव ने दिया नहीं है फिर भी लोक व्यवहार के लिए ऐसा कहा जाता है। इसी तरह भाव आवश्यक से शून्य किसी जीव-अजीव का व्यवहारार्थ आवश्यक नामकरण जीवापेक्षा से नाम आवश्यक है।
एक अजीव में नाम आवश्यक का प्रयोग इस प्रकार जानना चाहिएआवश्यक शब्द का एक अर्थ आवास भी है, उस अपेक्षा से सखे अचित्त अनेक कोटरों से व्याप्त वृक्षादि में 'यह सर्प का आवास है' इस नाम से लोकव्यवहार होता है यह अजीव की दृष्टि से नाम आवश्यक है।
अनेक जीवों में 'आवासक' यह नाम इस प्रकार घटित होता है- जैसे इष्टिकापाक (ईंट पकाने योग्य) आदि की अग्नि में अनेक मषिकायें सम्मर्छन जन्म धारण करती है। इस अपेक्षा से वह इष्टिकापाक आदि की अग्नि मूषिकावास रूप कही जाती है। इस प्रकार उन असंख्यात जीवों का 'आवासक' यह नाम सिद्ध होता है।
अनेक अजीवों में नाम आवासक इस प्रकार जानना चाहिए- जैसे घोंसला अनेक अजीव तिनकों से निर्मित होता है और उसमें पक्षी रहने से 'यह पक्षियों का आवासक है' ऐसा कहा जाता है अत: लोकव्यवहार में अनेक अजीवों में भी आवासक नाम सिद्ध होता है।
जीव और अजीव इन दोनों में आवासक नाम इस प्रकार है- जैसे जलाशय, उद्यान आदि से युक्त राजमहल 'राजा का आवास' इस नाम से कहा जाता है। वहाँ जलाशय आदि सचित्त और ईंट आदि अचित्त है और इन दोनों से निष्पन्न राजमहल आवास रूप होने से आवासक नामनिक्षेप का विषय बनता है इस प्रकार अनेक जीवों और अजीवों के सम्मिलित रूप में भी आवासक नाम सिद्ध होता है।26