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आवश्यक का स्वरूप एवं उसके भेद ...5
आवश्यक के प्रकार
षड्विध- नन्दी सूत्र में आवश्यक के छः प्रकार प्रज्ञप्त हैं- 1. सामायिक 2. चतुर्विंशतिस्तव 3. वन्दन 4 प्रतिक्रमण 5. कायोत्सर्ग और 6. प्रत्याख्यान। 22
अनुयोगद्वार सूत्र में इन छः प्रकारों के अर्थाधिकार अर्थात युक्तिसंगत अर्थ बतलाये गये हैं। इसका तात्पर्य यह है कि इन आवश्यक कर्मों के द्वारा जो करणीय है उसका बोध अर्थाधिकार से होता है । आवश्यक के छह अर्थाधिकार ( व्यवहार में प्रचलित नाम) ये हैं- 1. सावद्य योग विरति 2. उत्कीर्त्तन 3. गुणवत प्रतिपत्ति 4. स्खलित निन्दा 5. व्रण चिकित्सा और 6. गुण धारणा। 23 सामायिक अध्ययन का प्रतिपाद्य है- हिंसा, असत्य आदि सावद्य और पापकारी प्रवृत्तियों से विरत होना ।
चतुर्विंशतिस्तव अध्ययन का प्रतिपाद्य है- सावद्ययोग की विरति द्वारा मुक्तदशा को उपलब्ध करने वाले एवं सावद्ययोग विरति का उपदेश देने वाले तीर्थंकर पुरुषों के गुणों का स्तवन - उत्कीर्त्तन करना अथवा दर्शन विशोधि, पुनर्बोधिलाभ और कर्मक्षय के लिए अनन्त उपकारी महापुरुषों का गुणगान करना।
वन्दन अध्ययन का युक्त्यर्थ है- सावद्ययोग से उपरत होने के लिए तत्परशील एवं गुणवान ऐसे संयमी साधकों का आदर-सम्मान करना अथवा चारित्र सम्पन्न एवं गुण सम्पन्न व्यक्तियों का वन्दन, नमस्कार आदि के द्वारा सम्मान-बहुमान करना।
प्रतिक्रमण अध्ययन का प्रतिपाद्य है - मूलगुणों और उत्तरगुणों में स्खलना होने पर विशुद्ध भावों के स्मरण पूर्वक उनकी निन्दा-गर्दा करना ।
कायोत्सर्ग अध्ययन का युक्त्यर्थ है - स्वीकृत साधना में लगे हुए दोष रूप व्रण यानी अतिचारजन्य भाव व्रण ( घाव ) का आलोचना आदि दस प्रकार के प्रायश्चित्त रूप औषधोपचार द्वारा निराकरण करना ।
प्रत्याख्यान अध्ययन का अर्थ है - मूलगुण एवं उत्तरगुण सम्बन्धी पूर्वकृत दोषों का प्रायश्चित्त द्वारा विशोधन करके उन्हें निर्दोष रूप से धारण करना अथवा मूल एवं उत्तरगुणों का निरतिचार रूप से पालन करना | 24
चतुर्विध- आवश्यक स्वरूप का प्रतिपादन करने की अपेक्षा से अनुयोगद्वार सूत्र में निक्षेप के चार भेद बतलाए गए हैं, उनका स्वरूप इस प्रकार है - 25