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________________ 4...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में किये जाने योग्य होने से आवश्यक है अथवा जिसके द्वारा ज्ञानादि गुणों और मोक्ष की प्राप्ति होती है वह आवश्यक है। 2. अवश्यकरणीय- मोक्षाभिलाषी साधकों द्वारा नियम से अनुष्ठेय होने के कारण यह अवश्यकरणीय कहलाता है। 3. ध्रुवनिग्रह- आवश्यक क्रिया के द्वारा कर्म, कषाय और इन्द्रियों का निश्चित रूप से निग्रह होता है अतः इसका नाम ध्रुवनिग्रह है।17 आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार आवश्यक दिनचर्या और रात्रिचर्या का निश्चित रूप से नियमन करने वाला है, इसलिए इसका नाम ध्रुवनिग्रह है।18 विशेषावश्यकभाष्य की टीका में ध्रुव और निग्रह इन दोनों पदों की पृथक्-पृथक् व्याख्या की गयी है। उसके अनुसार आवश्यक कर्म ध्रुव या शाश्वत होने के कारण इसका एक नाम ध्रुव है तथा इसके द्वारा विषय-कषाय रूप भाव शत्रु का निग्रह होता है अत: इसका एक नाम निग्रह भी है।19 4. विशोधि- कर्मबद्ध आत्मा की विशुद्धि का हेतु होने के कारण आवश्यक विशोधि कहलाता है। 5. अध्ययनषट्क वर्ग- यह सामायिक आदि छ: अध्ययनों का समूह है अत: इसका नाम अध्ययनषट्क वर्ग है। विशेषावश्यकभाष्य के टीकाकार ने 'अज्झयणछक्क' और 'वग्ग'- इन दोनों पदों की पृथक्-पृथक् व्याख्या की है। उनके अनुसार सामायिक आदि छ: अध्ययनों से युक्त होने के कारण आवश्यक का एक नाम अध्ययनषट्क है तथा रागादि दोषों का दूर से परिहार करने के कारण एक नाम वर्ग या वर्ज है।20। ____6. न्याय- अभीष्ट अर्थ की सिद्धि का सम्यक उपाय होने से इसका नाम न्याय है। विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार जीव और कर्म के अनादिकालीन सम्बन्ध का अपनयन करने के कारण इसका नाम न्याय है।21 ____7. आराधना- इस क्रिया के द्वारा मोक्ष अथवा सर्व प्रशस्त भावों की आराधना होती है अत: आराधना नाम है। ____8. मार्ग- मार्ग का एक अर्थ उपाय है। यह मोक्ष तक पहुँचाने का मुख्य उपाय है अत: आवश्यक का एक नाम मार्ग है। विशेषावश्यकभाष्य में ध्रुव और निग्रह, अध्ययनषट्क और वर्ग इन दो नामों को पृथक्-पृथक् स्वीकार किया गया है इस अपेक्षा से आवश्यक के दस पर्यायवाची नाम होते हैं।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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