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प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...375
जाती है। तीसरा निर्देश यह है कि कठिन आपत्ति आने पर ही इसका सेवन करना चाहिए, क्योंकि पुनः पुन: उपयोग करने से प्रत्याख्यान खण्डित होता है। किस प्रत्याख्यान में कितने आहार का त्याग ?
प्रस्तुत अधिकार में प्रत्याख्यान शब्द का उल्लेख आहार त्याग के सन्दर्भ में हुआ है तथा इससे सम्बन्धित लगभग 21-22 प्रत्याख्यान बतलाए गए हैं। यहाँ उल्लेख्य यह है कि कौनसा प्रत्याख्यान कितने आहार के त्याग पूर्वक होता है ? पच्चक्खाण भाष्य के अनुसार विवेच्य चर्चा इस प्रकार है- 104
1. नवकारसी प्रत्याख्यान - मुनि एवं श्रावक के लिए चतुर्विध आहार के त्याग पूर्वक होता है।
2. पौरुषी, साढपौरुषी, पुरिमड्ड, अवड्ड प्रत्याख्यान - मुनि के लिए त्रिविध या चतुर्विध आहार के त्याग पूर्वक होता है, किन्तु गाढ़ (प्रबल) कारण में दुविहार के प्रत्याख्यान पूर्वक भी होता है ।
श्रावक के लिए द्विविध, 105 त्रिविध एवं चतुर्विध आहार के त्याग पूर्वक होता है।
3. एकाशन, बिआसन, एकलठाणा प्रत्याख्यान- मुनि के लिए तिविहार या चउविहार पूर्वक होता है, किन्तु गाढ़ (असह्य) कारण में दुविहार के प्रत्याख्यान पूर्वक भी होता है। श्रावक के लिए द्विविध, त्रिविध या चतुर्विध आहार के त्याग पूर्वक होता है, परन्तु एकलठाणा प्रत्याख्यान में आहार करने के बाद चउविहार ही होता है।
4. आयंबिल, नीवि, उपवास, भवचरिम प्रत्याख्यान- मुनि एवं श्रावक दोनों के लिए त्रिविध आहार व चतुर्विध आहार के त्याग सहित होता है। अपवाद में नीवि प्रत्याख्यान दुविध - आहार के त्याग पूर्वक भी होता है । 5. संकेत प्रत्याख्यान - मुनि के लिए त्रिविध या चतुर्विध आहार के त्याग पूर्वक होता है। यतिदिनचर्या के मत से आठ संकेत प्रत्याख्यान चतुर्विध आहार के त्यागपूर्वक ही होते हैं। 106 श्रावक के लिए द्विविध, त्रिविध अथवा चतुर्विध आहार के त्याग पूर्वक होता है।
6. दिवसचरिम (रात्रिक) प्रत्याख्यान - मुनि के लिए चतुर्विध आहार के त्याग पूर्वक होता है। श्रावक के लिए दुविहार, तिविहार या चउविहार के