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________________ प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...369 यह प्रत्याख्यान नमस्कार सहित एवं काल प्रमाण युक्त है। इससे स्पष्ट है कि 'एक मुहूर्त प्रमाण नमस्कार सहित प्रत्याख्यान' नवकारसी प्रत्याख्यान है। शंका- इस प्रत्याख्यान में सूर्योदय का प्रथम मुहूर्त ही क्यों लिया? समाधान- प्रत्याख्यान पाठ में 'सूरे उग्गए' ऐसा पद होने से प्रथम मुहूर्त ही लिया गया है- इति आगमवचनात्। प्रत्याख्यान पाठ का भावार्थ है कि सूर्योदय से लेकर नमस्कार-सहित तक मुहूर्त का प्रत्याख्यान नवकारसी है। __ शंका- एकाशन आदि प्रत्याख्यान स्वयं काल-परिमाण युक्त न होने से अद्धा प्रत्याख्यान के अन्तर्गत कैसे हैं? समाधान- यद्यपि एकाशन आदि का प्रत्याख्यान स्वयं काल परिमाण युक्त नहीं हैं तथापि अद्धा प्रत्याख्यान के बिना नहीं किये जाते। अत: वे भी उन्हीं के अन्तर्गत माने जाते हैं। शंका- एकासन आदि प्रत्याख्यान से ही काम चल सकता है। क्योंकि इसमें एक ही समय खाने की छूट है। फिर दिवसचरिम प्रत्याख्यान लेने का क्या प्रयोजन है? समाधान- एकासन आदि के प्रत्याख्यान आठ आगार वाले हैं तथा 'दिवसचरिम' प्रत्याख्यान चार आगार वाले हैं। अत: एकासना आदि के प्रत्याख्यान का संक्षेप करने के लिए सन्ध्या को दिवसचरिम प्रत्याख्यान करना आवश्यक है। इससे सिद्ध है कि एकासनादि के प्रत्याख्यान दिवस सम्बन्धी ही हैं, क्योंकि मुनियों के तो वैसे भी रात्रिभोजन का आजीवन त्याग होता है। गृहस्थ की अपेक्षा से दिवसचरिम प्रत्याख्यान अहोरात्रि का होता है क्योंकि दिवस शब्द का प्रयोग 'अहोरात्रि' के पर्याय रूप में भी होता है, जैसे- कोई तीन अहोरात्रि तक घर से बाहर रहा हो, तो वह यही कहेगा कि हम तीन दिन से घर आये हैं। जिन्हें रात्रिभोजन का आजीवन त्याग है, उनके लिये भी रात्रि भोजन विरमण व्रत का स्मारक होने से 'दिवसचरिम' प्रत्याख्यान सार्थक है।92 प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान का पारस्परिक सम्बन्ध __प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान दोनों आवश्यक क्रिया के मूलभूत अंग है। क्रमबद्धता की अपेक्षा प्रतिक्रमण चौथा और प्रत्याख्यान छठा आवश्यक है। स्वरूपतः प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान दोनों भिन्न-भिन्न हैं तथापि एक-दूसरे के पूरक एवं योजक होने के कारण पारस्परिक सम्बन्ध से युक्त है।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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