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368... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
प्रवचनसारोद्धार,१° प्रत्याख्यानभाष्य 21 वगैरह में प्रत्याख्यान शुद्धि के छः प्रकारों का निर्देश है जबकि आवश्यकचूर्णि में पारित और अनुपालित ऐसे दो शुद्धियों को मिलाकर आठ प्रकार उल्लिखित हैं।
प्रत्याख्यान पाठ सम्बन्धी स्पष्टीकरण
पूर्वोल्लेखित विवेचन से यह सुस्पष्ट है कि जैन आम्नाय में नवकारसी आदि व्रत प्रत्याख्यान प्रतिज्ञा पाठपूर्वक धारण किये जाते हैं। उन पाठों से सम्बन्धित किंचिद् स्पष्टीकरण प्रश्नोत्तर शैली में निम्न प्रकार है
शंका- नवकारसी प्रत्याख्यान पाठ में काल - मर्यादा का सूचन नहीं किया गया है, केवल नमस्कारमन्त्र गिनने का उल्लेख है, तब उसे संकेत प्रत्याख्यान की कोटि में न रखकर अद्धा (काल) प्रत्याख्यान क्यों कहा गया ?
समाधान- प्रस्तुत पाठ में 'नमुक्कारसहियं' शब्द का अर्थ है- नमस्कार सहित प्रत्याख्यान। यहाँ सहित शब्द मुहूर्त्त (काल विशेष) का द्योतक है। दूसरे अर्थ के अनुसार ‘सहित' शब्द विशेषण है और विशेषण से विशेष्य का बोध होता है अतः इसका अर्थ होता है - नमस्कारसहित मुहूर्त्त - युक्त प्रत्याख्यान।
शंका- नवकारसी प्रत्याख्यान पाठ में मुहूर्त्त शब्द का कहीं भी उल्लेख नहीं हैं तो वह किसी विशेषण का विशेष्य कैसे बन सकता है? जब आकाशपुष्प स्वयं ही सत्य नहीं है तो उसकी सुगन्ध की चर्चा कैसे हो सकती है ?
समाधान- नवकारसी प्रत्याख्यान अद्धा प्रत्याख्यान के अन्तर्गत है । पोरिसी प्रत्याख्यान काल प्रमाण युक्त है अतः उसका पूर्वभावी नवकारसी प्रत्याख्यान भी काल-प्रमाण युक्त होना चाहिए। इतना विशेष है कि नवकारसी अल्प आगार वाला होने से अल्पकालिक होना चाहिए। यद्यपि यहाँ नवकारसी का काल प्रमाण नहीं बताया है, फिर भी अध्याहार से उसका अल्प में अल्प एक मुहूर्त्त का काल अवश्य समझना चाहिए।
शंका- नवकारसी प्रत्याख्यान का काल एक मुहूर्त्त ही क्यों माना गया ? समाधान- नवकारसी प्रत्याख्यान में दो ही आगार हैं अतः काल प्रमाण भी अल्प ही होना चाहिए। दूसरे, प्रत्याख्यान की दृष्टि से मुहूर्त्त सबसे अल्प काल है। तीसरी बात यह है कि काल (मुहूर्त्त ) पूर्ण होने पर भी यदि नमस्कार - मन्त्र न गिना हो, तो यह प्रत्याख्यान पूर्ण नहीं होता, वैसे नमस्कार गिन लिया हो, किन्तु प्रत्याख्यान का काल पूर्ण न हुआ हो तो भी प्रत्याख्यान पूर्ण नहीं होता, क्योंकि