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________________ 364...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में तृतीय उच्चारस्थान में- बियासना, एकासना और एकलठाणा इन तीन प्रत्याख्यानों के आलापक कहे जाते हैं। चतुर्थ उच्चारस्थान में- 'पाणस्स' का आलापक बोला जाता है। पंचम उच्चारस्थान में - ‘देशावगासिक' का प्रतिज्ञापाठ कहा जाता है। इस प्रकार पाँच मूल उच्चार स्थानों के 21 भेद होते हैं। प्रथम उच्चारस्थान में प्राय: चार प्रकार के आहार का त्याग होता है। द्वितीय उच्चारस्थान में छ: भक्ष्य विगइयों में से एक का भी परित्याग न किया हो, फिर भी चार अभक्ष्य महा विगइयों का त्याग तो प्राय: सभी को करना चाहिए, उस अपेक्षा से विगय त्याग का आलापक कहा जाता है। तृतीय उच्चारस्थान में एकासन, बियासन, एकलस्थान आदि प्रत्याख्यान तिविहार या चौविहार पूर्वक किया जाता है। यहाँ तिविहार या चउविहार प्रत्याख्यान का अभिप्राय यह है कि एकासन आदि करने के पश्चात पानी के सिवाय त्रिविध आहार का या पानी सहित चतुर्विध आहार का त्याग किया जाता है। चतुर्थ उच्चार स्थान में ‘पाणस्स' आदि से सचित्त पानी का त्याग रूप प्रत्याख्यान किया जाता है और पंचम उच्चारस्थान में पहले से निश्चित किए सचित्त द्रव्य आदि का त्याग किया जाता है अथवा सचित्त आदि द्रव्यों का संक्षेप रूप चौदह नियम का प्रत्याख्यान किया जाता है। उपर्युक्त पाँच स्थान भोजन करने वाले साधकों की अपेक्षा जानने चाहिए।84 अभक्तार्थी की अपेक्षा उपवास या षष्ठभक्त आदि तप करने वाले साधकों के लिए चार उच्चारस्थान होते हैं। पच्चक्खाणभाष्य में उपवास के प्रत्याख्यान में भी सन्ध्या को पाणहार के प्रत्याख्यान पूर्वक पाँच उच्चार स्थान कहे हैं। तदनुसार उपवास के प्रथम उच्चारस्थान में चतुर्थभक्त (उपवास) से लेकर चौत्रीश भक्त (16 उपवास) तक का प्रत्याख्यान, दूसरे उच्चारस्थान में नवकारसी आदि तेरह प्रत्याख्यान,तीसरे उच्चार स्थान में सचित्त पानी के त्याग रूप ‘पाणस्स' आदि का प्रत्याख्यान, चौथे उच्चारस्थान में देशावगासिक का प्रत्याख्यान और पाँचवें उच्चारस्थान में यथासंभव सन्ध्याकालीन पाणहार या चौविहार का प्रत्याख्यान किया जाता है।85 उक्त वर्णन का स्पष्टार्थ यह है कि यदि उपवास में चारों आहारों का त्याग किया हो, तो उस प्रत्याख्यान में उपवास का उच्चार (प्रतिज्ञा पाठ) और
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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