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प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...365
देशावगासिक का उच्चार ऐसे दो उच्चारस्थान ही होते हैं, परन्तु उपवास में पानी की छूट रखी हो, तो उसका प्रत्याख्यान पाँच उच्चार स्थान युक्त होता है।
पुनश्च पहला उच्चारस्थान वर्तमान काल की अपेक्षा 16 प्रकार का अर्थात अन्तिम तीर्थंकर के शासन में संघयण बल आदि का उत्तरोत्तर ह्रास होने के कारण एक साथ 16 उपवास से अधिक तप का प्रत्याख्यान करवाने की आज्ञा नहीं है। दूसरा उच्चारस्थान 13 प्रकार का तथा तीसरा, चौथा एवं पांचवाँ— ये तीन उच्चारस्थान एक-एक प्रकार के हैं।
जनसामान्य के सुगम बोध के लिए किस प्रत्याख्यान में कितने उच्चारस्थान होते हैं, वह तालिका निम्नोक्त है
प्रत्याख्यान नाम
एकासना में 5 उच्चारस्थान
बिआसना में 5 उच्चारस्थानएकलठाणा में 5 उच्चारस्थानआयंबिल में
उच्चारस्थान
नीवि में 5 उच्चारस्थान
उच्चारस्थान
• प्रथम स्थान नवकारसी आदि पाँच और संकेत आदि आठ प्रत्याख्यान का होता है। • दूसरा स्थान विगयत्याग प्रत्याख्यान का होता है।
• तीसरा स्थान एकाशना, बिआसना एवं एकलठाणा प्रत्याख्यान का होता है।
• चौथा स्थान पाणस्स प्रत्याख्यान का होता है।
• पांचवाँ देशावगासिक या दिवसचरिम प्रत्याख्यान का होता है।
एकासन के समान समझना चाहिए। एकासन के समान समझना चाहिए। एकासन के समान, परन्तु दूसरा उच्चार स्थान आयंबिल प्रत्याख्यान का होता है। एकासन के समान होते हैं, परन्तु दूसरा उच्चारस्थान आयंबिल प्रत्याख्यान का होता है।
तिविहार उपवास में 5 उच्चारस्थान - पहला एक उपवास से सोलह उपवास पर्यन्त प्रत्याख्यान का होता है, दूसरा