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348...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में प्रत्याख्यान के आगारों का स्वरूप
जैन शासन विरति प्रधान है। प्रत्याख्यान, विरतिधर्म का मूल है। विरति अनेक प्रकार की होती है जैसे- कषाय विरति, मिथ्यात्व विरति, प्रमाद विरति, राग विरति आदि। यहाँ विरति (प्रत्याख्यान) से तात्पर्य-चतुर्विध आहार के त्याग से है। इस विरतिमार्ग में अनेक तरह के दोष लगने की संभावना रहती है अत: प्रबुद्ध आचार्यों ने उसके कुछ अपवाद रखे हैं, जिससे प्रत्याख्यान खण्डित न हो। शास्त्रीय परिभाषा में इन्हें आगार कहा गया है।
. आगार शब्द का सम्यक् विश्लेषण- प्राकृत भाषा का 'आगार' ही संस्कृत भाषा में 'आकार' कहलाता है। आकार का अर्थ-अपवाद है। अपवाद का अर्थ है- यदि किसी विशेष स्थिति में त्याग की हुई वस्तु सेवन कर ली जाए या करनी पड़ जाए तो प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है। अतएव आहार त्याग के सम्बन्ध में प्रत्याख्यान करते समय आवश्यक आगार रखने चाहिए। ___ 1. अनाभोग- न + आभोग = अनाभोग। प्रत्याख्यान की अत्यंत विस्मृति होना अनाभोग कहलाता है।64 'अमुक वस्तु का प्रत्याख्यान (त्याग) किया हैं। इस प्रतिज्ञा से उपयोग शून्य होने पर किसी वस्तु का मुख में चले जाना अनाभोग कहलाता है। प्रत्याख्यान सूत्र में इस नाम का आगार (अपवाद) रखने से अनाभोग होने पर भी प्रत्याख्यान भग्न नहीं होता है। अग्रिम आगारों में भी यही बात समझनी चाहिए।
अनाभोग का प्राकृत रूपान्तर 'अन्नत्थणाभोग' है। इसमें अन्नत्थ + आभोग - ये दो शब्द हैं। अन्नत्थ का अर्थ है- अन्यथा नहीं होना, अनाभोग का अर्थ है- विस्मृत हो जाना अर्थात विस्मरण से प्रत्याख्यान का अन्यथा नहीं होना। जिस प्रत्याख्यान में जितने आगार होते हैं उन सभी के साथ अन्नत्थ शब्द का सम्बन्ध होता है। अनाभोग आगार का स्पष्टार्थ यह है कि गृहीत प्रत्याख्यान मतिदोष या भ्रान्तिवश कदाच विस्मृत हो जाए और त्यक्त वस्तु भूलवश मुँह में डाल दी जाए तो अनाभोग कहलाता है। किन्तु इसका अपवाद रखकर प्रत्याख्यान ग्रहण करने से वह दूषित नहीं होता है।
2. सहसाकार- सहसा + आकार। सहसा- अकस्मात, अचानक, शीघ्रता से, आकार- छूट अर्थात अकस्मात या संयोगवशात किसी वस्तु की इच्छा न होने पर भी उसका मुख में चले जाना, जैसे-उपवास किए हुए व्यक्ति