________________
336...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में एकासन एवं बियासना प्रतिज्ञासूत्र __उग्गए सूरे पोरिसिं, साड्डपोरिसिं एकासणं पच्चक्खामि, दुविहं तिविहं चउव्विहपि वा आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं। अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं सागारियागारेणं, आउंटणपसारेणं, गुरुअब्भुट्ठाणेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि।
अर्थ- सूर्योदय से लेकर दिन के एक प्रहर या डेढ़ प्रहर तक के लिए एकासन-तप स्वीकार करता हूँ। जिसमें अशन, खादिम और स्वादिम- इन तीनों प्रकार के अथवा अशन, पान, खादिम और स्वादिम- इन चारों प्रकार के आहारों का- अनाभोग, सहसाकार, सागारिकाकार, आकुंचन-प्रसारण, गुरुअभ्युत्थान, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार एवं सर्वसमाधिप्रत्ययाकार- इन आठ आगारों (अपवादों) के सिवाय पूर्णतया त्याग करता हूँ।45
विशेषार्थ- बियासण-प्रत्याख्यान करते समय ‘एकासणं' के स्थान में 'बियासणं' पाठ बोलना चाहिए। शेष पाठ दोनों प्रत्याख्यानों का समान है।
वर्तमान परम्परा में एकासना साढपोरिसी के पश्चात किया जाता है। बियासन का प्रत्याख्यान नवकारसी प्रत्याख्यान पूर्वक भी किया जा सकता है। ___ एकासना और बियासना में भोजन करते समय चारों आहार लिए जा सकते हैं, परन्तु भोजन के बाद शेष काल में भोजन का त्याग होता है यदि एकाशन तिविहार पूर्वक करना हो, तो शेषकाल में पानी पिया जा सकता है। यदि चउविहार करना हो तो पानी भी नहीं पिया जा सकता।
प्रतिज्ञापाठ में 'दुविहं' शब्द का उल्लेख है, जिसका तात्पर्य-दुविहार प्रत्याख्यान से है। यदि एकाशन के पश्चात दुविहार करना हो तो भोजन के बाद पानी और स्वादिम-मुखवास लिया जा सकता है। आजकल तिविहार एकाशन की प्रथा ही प्रचलित है। अत: आवश्यकसूत्र के मूलपाठ में 'तिविहं' पाठ दिया है। एगलठाणा प्रतिज्ञासूत्र ___ उग्गए सूरे पोरिसिं, साड्डपोरिसिं वा एक्कासणं एगट्ठाणं पच्चक्खामि। चउव्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं, गुरुअब्भुट्ठाणेणं, पारिट्ठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि।