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________________ प्रत्याख्यान आवश्यक का शास्त्रीय अनुचिन्तन ...319 चौरासी लाख व्रतों को शुद्ध रखने की प्रतिज्ञा करना, प्रत्याख्यान है। आचार्य कुन्दकुन्द प्रत्याख्यान का बाह्य स्वरूप बतलाते हुए कहते हैं कि मुनि के द्वारा दिन में भोजन कर लेने के पश्चात योग्य काल पर्यन्त अशन, पान, खाद्य और लेह्य रुचि का त्याग करना, प्रत्याख्यान है।10 उपर्युक्त व्याख्याएँ लगभग व्यवहार नय की अपेक्षा से है। आचार्य कुन्दकुन्दकृत समयसार में इसका निश्चय स्वरूप दिखलाते हुए कहा गया है कि जिस भाव के द्वारा भविष्य काल का शुभ एवं अशुभ कर्म बंधता है, उस भाव से आत्मा का निवृत्त होना, परमार्थ प्रत्याख्यान है।11 नियमसार में बताया गया है कि समस्त जल्प (विशाद) का परित्याग करना और अनागत शुभ एवं अशुभ का निवारण करके आत्म स्वरूप का ध्यान करना प्रत्याख्यान है। इसी के साथ जो निज भाव का परित्याग नहीं करता और किंचित भी परभाव को ग्रहण नहीं करता, सर्व को जानता-देखता है, 'वह मैं हूँ'- इस प्रकार का चिंतन करना भी प्रत्याख्यान है।12 इस चिंतन के द्वारा देहत्व भाव न्यून होता है, देहासक्ति में मन्दता आती है अतः देह ममत्व के त्याग रूप प्रत्याख्यान होता है। आचार्य अमितगति ने इसको परिभाषित करते हुए कहा है कि जो महापुरुष समस्त कर्म जनित विकारी भावनाओं से रहित आत्म स्वरूप का दर्शन करते हैं उनके द्वारा पापात्रव के हेतुओं का त्याग कर देना प्रत्याख्यान है।13 संक्षेप में कहा जा सकता है कि पापजन्य क्रियाओं का वर्जन कर सुकृत में प्रयत्नशील रहना अथवा आत्म परिणामों में सुस्थिर होना प्रत्याख्यान है। प्रत्याख्यान के पर्याय प्रत्याख्यान के पर्याय शब्द अनेक हैं। प्रबोध टीका के अनुसार प्रत्याख्यान, नियम, अभिग्रह, विरमण, व्रत, विरति, आस्रव द्वार, निरोध, चारित्रधर्म, शील और निवृत्ति- ये एकार्थक शब्द हैं।14 आगम सूत्रों में जहाँ नियम की प्रशंसा की गई हो, अभिग्रह का अनुमोदन किया गया हो, विरमण व्रत या विरति का माहात्म्य प्रकाशित किया गया हो, आस्रव द्वार के निरोध करने का कथन किया गया हो, निवृत्ति पर बल दिया गया हो, चारित्र धर्म का उपदेश दिया गया हो अथवा शील का माहात्म्य समझाया गया हो, वहाँ प्रत्याख्यान का स्वरूप वर्णन साथ ही किया गया है ऐसा समझना चाहिए।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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