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________________ 318...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में अथवा बंधन कारक प्रवृत्ति का निषेध किया जाता है वह प्रत्याख्यान है। दूसरी व्युत्पत्ति के आधार पर जिसके विषय में जिसका प्रतिषेध किया जाता है वह प्रत्याख्यान है। • आचार्य हेमचन्द्र प्रत्याख्यान का निरूक्तिपरक अर्थ करते हुए कहते हैंविरुद्ध भाव में कथन करना अथवा 'प्रति' प्रतिकूल भाव से, 'आ' मर्यादा पूर्वक, 'ख्यान' कहना। इस व्युत्पत्ति के अनुसार किसी वस्तु का प्रतिकूल भाव से अमुक कथन करना, प्रत्याख्यान है। . आचार्य सिद्धसेन दिवाकर के अनुसार अविरति और असंयम के प्रति प्रतिकूल रूप में, आ - मर्यादा स्वरूप आकार के साथ, आख्यान - प्रतिज्ञा करना प्रत्याख्यान है। स्पष्ट है कि आत्म विरुद्ध प्रवृत्तियाँ न करने का संकल्प करना प्रत्याख्यान है। प्रत्याख्यान की मौलिक परिभाषाएँ अमुक समय के लिए या यावज्जीवन के लिए किसी वस्तु का त्याग कर देना प्रत्याख्यान है। जैन चिन्तकों ने इस संदर्भ में अनेक परिभाषाएँ दी है श्री यशोदेवसूरि प्रत्याख्यान स्वरूप का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि अविरति के प्रतिकूल और विरति भाव के अनुकूल सम्यक कथन करना प्रत्याख्यान है। ____ आचार्य वट्टकेर प्रत्याख्यान का स्वरूप निरूपित करते हुए कहते हैं कि पाप के आस्रव में कारणभूत अयोग्य नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का मन-वचन-काय से त्याग करना प्रत्याख्यान है अथवा भविष्यकाल और वर्तमान काल में अयोग्य नाम, स्थापना आदि छहों का त्याग करना प्रत्याख्यान है। राजवार्तिककार ने इसकी सूक्ष्म व्याख्या करते हुए दर्शाया है कि भविष्यकाल में किसी प्रकार का दोष उत्पन्न न हो, उसके लिए कटिबद्ध होना, सम्यक् पुरुषार्थ में संलग्न हो जाना प्रत्याख्यान है। धवला टीकाकार के उल्लेखानुसार महाव्रत रूपी मूल गुणों का विनाश न हो एवं मलिन भावों का उत्पादन न हो, इस हेतु से मनोयोग द्वारा पूर्वकृत सर्व दोषों की आलोचना करके
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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