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________________ 304...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में कायोत्सर्ग करते हैं तब लगभग इरियावहि, तस्सउत्तरी, अन्नत्थ और लोगस्सये चार सूत्र बोले जाते हैं, इसे ईर्यापथ प्रतिक्रमण कहते हैं। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि कायोत्सर्ग से सम्बन्धित मुख्य दो ही सूत्र हैं- 1. तस्सउत्तरीसूत्र और 2. अन्नत्थसूत्र। परन्तु इन सूत्रों से पूर्व प्रायः इरियावहिसूत्र भी बोला जाता है अतः सभी सूत्रों का विश्लेषण प्रबोधटीका गुजराती भाषान्तर के आधार पर किया जा रहा है।99 ___ 1. इरियावहिसूत्र- जैन क्रिया का प्रमुख सूत्र होने से इसका मूल पाठ भी उद्धृत कर रहे हैं___ इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! इरियावहियं पडिक्कमामि? इच्छं, इच्छामि पडिक्कमिउं इरियावहियाए विराहणाए, गमणागमणे पाणक्कमणे,बीय-क्कमणे, हरिय-क्कमणे, ओसा-उत्तिंग-पणग-दग-मट्टीमक्कडा-संताणा-संकमणे। जे मे जीवा विराहिया। एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिदिया। अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओ ठाणं, संकामिया, जीवियाओ, ववरोविया, तस्स मिच्छामि दुक्कडं। उद्देश्य- व्यक्ति को स्वयं के द्वारा किए गए अपराधों का ज्ञान होना आवश्यक है। यदि स्वकृत भूलों का बोध न हो, तो उसे सुधारने का प्रयत्न भी नहीं हो सकता है, इसलिए दोषों का भान होना अनिवार्य है। यह भूल सुधार की उत्तम कला है। सत्-प्रवृत्ति और असत्-निवृत्ति- यह सचेत अवस्था का प्रतीक है और सद्-निवृत्ति तथा असद्-प्रवृत्ति- यह प्रमाद अवस्था का सूचक है। अप्रमत्त स्थिति भूल सुधारने की कला का रहस्य है। ईर्यापथिकसूत्र की योजना इस दृष्टि को लक्ष्य में रखकर की गई है। व्यक्ति मात्र की सामान्य क्रिया भी किसी अन्य के लिए पीड़ाकारी न हो- यही प्रस्तुत सूत्र का सार है। • आचार्य हरिभद्रसूरि ने आवश्यकटीका में इस सूत्र का नाम 'गमनातिचार प्रतिक्रमण' दिया है। दशवैकालिक टीका में इसका विवेचन 'ईर्यापथ प्रतिक्रमण' नाम से किया गया है। आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र की स्वोपज्ञवृत्ति में इसी नाम का उपयोग किया है और उसे 'आलोचन प्रतिक्रमण' के नाम से उल्लेखित किया है। . इस सूत्र का उपयोग सामायिक, प्रतिक्रमण, चैत्यवंदन आदि अनेक क्रियानुष्ठानों में होता है। तदुपरान्त दु:स्वप्न आदि के निवारण के लिए, आशातना
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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