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________________ 302...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में विचार करना आवश्यक है। आजकल प्रतिक्रमण करते समय जब चार, आठ या बारह आदि लोगस्स सूत्र का कायोत्सर्ग करते हैं तब स्वयं को मच्छरों से बचाने के लिए अथवा सर्दी आदि से रक्षा करने के लिए शरीर को सब ओर से वस्त्र द्वारा ढक देते हैं। तब यह देह व्युत्सर्ग की साधना कैसे? ममत्व त्याग की उपासना कैसे? यह तो उल्टा शरीर का मोह है। कायोत्सर्ग तो कष्ट झेलने एवं कष्ट सहने के लिए देहाध्यास से विलग होने की साधना है। कष्ट सहिष्णु होने के लिए वस्त्र रहित होकर ही कायोत्सर्ग करना चाहिए, वही वास्तविक कायोत्सर्ग कहलाता है। हमारी प्राचीन परम्परा सामायिक, प्रतिक्रमण आदि के समय अधोवस्त्र पहनने की ही रही है। आचार्य धर्मदासगणी आदि अनेक आचार्यों ने प्रतिक्रमण और कायोत्सर्ग करते समय उत्तरासंग ओढ़ने का निषेध किया है।96 अत: आवश्यक है कि वर्तमान परिपाटी एवं व्यवहार को मौलिक संकल्पना के अनुरूप सुधारा जाये। यदि नव्ययुग की समस्याओं के विषय में चिंतन करें तो कायोत्सर्ग सर्वप्रथम इन्द्रिय ममत्व को कम करता है, इन्द्रिय राग कई समस्याओं का कारणभूत है। अधिकतम अपराध या अनैतिक कार्य इन्द्रिय राग के वशीभूत होकर ही किए जाते हैं। चोरी, बेईमानी, बलात्कार, आहार लोलुपता आदि समस्याएँ इन्द्रिय अनियंत्रण के कारण ही उत्पन्न होती हैं। कायोत्सर्ग के माध्यम से काया के प्रति रही आसक्ति को जब न्यून किया जाता है तो ऐसी समस्याओं का स्वयमेव ही निराकरण हो जाता है। कायोत्सर्ग के द्वारा नाड़ियों का शोधन होता है जिससे कई रोगों का शमन होता है। इसी प्रकार स्वयं पर ध्यान केन्द्रित करने से मन एकाग्र होकर बाह्य विषयों में नहीं दौड़ता तथा मानसिक एवं शारीरिक आवेग एवं आवेश शांत होते हैं। इस साधना से बढ़ते रक्तचाप, पक्षाघात, रक्तअल्पता आदि को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की समस्याएँ जैसे कि आतंकवाद आदि को कम कर सकते हैं। इस प्रकार कायोत्सर्ग के माध्यम से स्व केन्द्रित होने पर अनेक समस्याओं का निराकरण सम्भव है। __ प्रबंधन की दृष्टि से विचार करें तो कायोत्सर्ग के द्वारा दृष्टि प्रबन्धन, भाव प्रबन्धन, कषाय प्रबंधन आदि कई प्रकार का नियंत्रण संभव है। सर्वप्रथम तो
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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