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________________ कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ... 301 आवश्यकता है। शरीर और आत्मा को पृथक्-पृथक् समझने की कला ही राष्ट्र में कर्त्तव्य की चेतना जगा सकती है। जड़-चेतन का भेद समझे बिना सारी साधना मृत साधना है। जीवन के कदम-कदम पर कायोत्सर्ग का स्वर गूंजते रहने में ही वर्तमान के धर्म, समाज और राष्ट्र का कल्याण है । कायोत्सर्ग के बल पर ही व्यक्ति महान् उद्देश्यों की पूर्ति के लिए तुच्छ स्वार्थों का बलिदान कर सकता है। इस दुर्लभ जीवन में शरीर का मोह बहुत बड़ा बन्धन हैं। इसी कारण व्यक्ति को हर कदम पर चोरी, accident, बीमारी, प्रतिकूल परिस्थिति, उपद्रव संभावना तथा मृत्यु का भय बना रहता है, जिससे साधक कर्त्तव्य साधना से पराङ्मुख भी हो जाता है। आचार्य अकलंक ने इन सब बन्धनों से मुक्ति पाने का एक मात्र उपाय कायोत्सर्ग को बताया है ‘नि:संग-निर्भयत्व-जीविताशा- व्युदासाद्यर्थो व्युत्सर्गः’- निःसंगत्व, निर्भयत्व, जीवित आशा का त्याग, दोषोच्छेद और मोक्षमार्ग प्रभावना आदि के लिए व्युत्सर्ग करना आवश्यक है। 93 आचार्य अमितगति कायोत्सर्ग के लिए मंगल कामना करते हुए कहते हैं हे जिनेन्द्र! आपकी अपार कृपा से मेरी आत्मा में ऐसी आध्यात्मिक शक्ति प्रकट हो कि मैं अपनी अनन्त शक्ति सम्पन्न, दोषरहित, निर्मल स्वभावी आत्मा को इस क्षणभंगुर शरीर से उसी प्रकार अलग कर सकूं, अलग समझ सकूं, जिस प्रकार म्यान से तलवार अलग की जाती है। 94 जैनाचार्यों ने षडावश्यक में कायोत्सर्ग को स्वतन्त्र स्थान ऊपर वर्णित भावना को व्यक्त करने के लिए ही दिया है। प्रत्येक जैन साधक को प्रातः और सायं कायोत्सर्ग के द्वारा भेद विज्ञान की साधना करने का नियमा निर्देश है । जो प्रतिदिन कायोत्सर्ग साधना का अभ्यास करते हैं वे निश्चित रूप से देहविरक्त बन, जीवन के महान लक्ष्य को संप्राप्त कर लेते हैं। आचार्य सकलकीर्ति ने भी कहा है- कायोत्सर्ग के द्वारा धीमान् पुरुषों का शारीरिक ममत्व छूट जाता है और शारीरिक ममत्व का छूट जाना ही वस्तुतः महान् धर्म और सुख है।95 विदेही व्यक्ति ही परिवार, समाज एवं राष्ट्र प्रगति तथा उसके कल्याण के लिए हर-हमेश कटिबद्ध रह सकता है, अपने आप को सर्वात्मना समर्पित कर सकता है। यहाँ प्रसंगवश कायोत्सर्ग की वर्तमानकालिक स्थिति पर भी किंचिद्
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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