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________________ 300...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में का कम होना, स्फूर्ति होना, चिन्मयता आदि। इन संवेदनाओं के प्रति सजग रहकर यह देखना चाहिए कि ये संवेदनाएँ अनित्य हैं और इनके प्रति क्या राग और क्या द्वेष करें। इन संवेदनाओं को देखते-देखते साधक देहाध्यास से उस पार हो जाता है।92 ___ इस तरह सुस्पष्ट है कि कायोत्सर्ग विविध दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। यह जैविक शान्ति और आध्यात्मिक उपलब्धि का श्रेष्ठतम उपाय भी है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कायोत्सर्ग का मूल्य ____ कायोत्सर्ग आत्मानुभूति का द्वार है, स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा का योग है। कायोत्सर्ग का मूलोद्देश्य शरीर के ममत्व को न्यून करना, निसंग एवं अनासक्त स्थिति का रसास्वादन करना तथा सब ओर से सिमटकर आत्मस्वरूप में लीन होना है। शरीर का मोह, शरीर की ममता साधारण व्यक्ति के लिए अनर्थकारी है, साधक के लिए तो विषतुल्य है। शरीर का पोषण करना ही मानव जीवन का कर्तव्य नहीं है, जो शरीर को ही सब कुछ समझते हैं, दिन-रात उसी के सजानेसंवारने में लगे रहते हैं, वे मूल कर्त्तव्य से च्युत हो जाते हैं। इसी के साथ देहासक्ति भोग का मूल है। जहाँ भोगलिप्सा है, भोगाकांक्षा है वहाँ अर्थप्राप्ति, धनसंग्रह परिग्रह संचय की कामना पनपती है। आजकल जर, जोरू, जमीन के पीछे भाई-भाई के बीच, पिता-पुत्र के बीच, भाई-बहिन के बीच जो संघर्ष हो रहे हैं, विवाद बढ़ रहे हैं, परिवार बिखर रहे हैं, उन सब का मूल कारण देहासक्ति है। उपाध्याय अमरमुनि ने इस संदर्भ में सम्यक् चिन्तन प्रस्तुत किया है। जो शरीर को ही सर्वेसर्वा मानते हैं वे यथोचित रूप से परिवार, समाज एवं राष्ट्र की रक्षा नहीं कर सकते हैं। देह के लिए जीवनयापन करने वाले लोग स्वार्थ परायण होते हैं, अपना स्वार्थ सिद्ध होने तक परिवार आदि से सम्बन्ध रखते हैं। तत्पश्चात उनकी सद्गति-दुर्गति से कुछ भी लेन-देन नहीं रखते हैं। आज भारत इस स्थिति में पहुँच गया है जहाँ व्यक्ति स्वयं का ही मूल्य आंक रहा है, स्वयं को ही समृद्धि के शिखर पर पहुँचाने के प्रयत्न में जुटा हुआ है, परिवार और समाज के दयनीय स्थिति वाले लोगों की ओर यत्किंचित भी ध्यान नहीं हैं। इसलिए आज देश के प्रत्येक नागरिक को कायोत्सर्ग सम्बन्धी शिक्षा लेने की
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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