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________________ 298...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में (तनाव) के कारण मानव देह के 1. अवचेतक (हाइपोथेलेमस) 2. पीयूष ग्रन्थि (पिट्यूचरी ग्लाण्ड) 3. अधिवृक्क (एड्रीनल ग्लेण्डस्), 4. स्वायत्त नाड़ी संस्थान के अनुकंपी विभाग आदि पर कुप्रभाव पड़ता है। जिसके दुष्परिणाम से 1. पाचन क्रिया मंद होते-होते स्थगित हो जाती हैं 2. लार ग्रन्थियों के कार्य स्थगन से मुँह सूखने लगता है। 3. चयापचय की क्रिया में अव्यवस्था होने लगती है। 4. यकृत द्वारा संगृहीत शर्करा अतिरिक्त रूप से रक्त प्रवाह में छोड़ी जाती है जो मधुमेह बीमारी की हेतु बनती है। 5. श्वास गति में तीव्रता आती है जिससे हांफनी चढ़ती है 6. हृदय की धड़कन बढ़ जाती है और 7. रक्तचाप बढ़ जाता है। इन शारीरिक विषमताओं के कारण निद्रा न आना, रक्तचाप ऊँचानीचा होना, हृदयाघात, पक्षाघात, हेमरेज, रक्त अल्पता, वायु-विकार आदि हो जाते हैं। व्यक्ति धीरे-धीरे संकल्पहीन, इन्द्रिय सुखकामी, चंचल परिणामी एवं अस्थिर हो जाता है। उसकी शारीरिक एवं मानसिक दोनों स्थितियाँ विषम हो जाती है तथा भावधारा विकृत होने से विपरीत दिशा का राही हो जाता है। कायोत्सर्ग इन व्याधियों एवं दुर्विकल्पों से मुक्त होने के लिए सर्वोत्कृष्ट उपाय है। हम देखते हैं कि मन, मस्तिष्क और शरीर का गहरा सम्बन्ध है। उनमें असमंजस होने पर जो स्थिति उत्पन्न होती है उससे स्नायविक तनाव होता है। उसके कारण मानसिक आवेग प्रकट होते हैं। वस्तुत: जब हम शरीर को किसी दूसरे कार्य में लगाते हैं और मन कहीं दूसरी ओर भटकता है तब स्नायविक तनाव बढ़ता है, परन्तु शरीर और मन को एक साथ कार्य में संलग्न करने का अभ्यास कर लिया जाए तो स्नायविक तनाव की स्थिति का प्रश्न ही नहीं उठेगा। कायोत्सर्ग इस तनाव मुक्ति का प्रयास है। कायोत्सर्ग से मानसिक, स्नायविक, भावात्मक तनाव समाप्त हो जाते हैं, ममत्व का विसर्जन हो जाता है, सभी नाड़ी तंत्रीय कोशिकाएँ प्राण-शक्ति से अनुप्राणित हो जाती हैं। तनाव के कारण होने वाली बीमारियाँ उत्पन्न नहीं होती और यदि बीमारियाँ हो तो धीरेधीरे समाप्त हो जाती है। मनोविज्ञान की दृष्टि से- प्रबुद्ध चिन्तकों का मानना है कि कायोत्सर्ग के अवलम्बन से अवचेतन मन तक पहुँच कर मन की गहराइयों तक जा सकते हैं और संस्कार मुक्त हो सकते हैं। आधुनिक विज्ञान के अभिमत से शरीर का
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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