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कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान 297
की जाती है। इस प्रकार 60 प्रतिशत व्यक्ति तो बिना शिकायत किए ही लौट जाते है, क्योंकि वे आवेश के वशीभूत होकर न्यायालय में आते हैं, किन्तु आवेश मिटते ही शान्त हो जाते हैं।
बौद्धिक दृष्टि से - कायोत्सर्ग से प्रज्ञा का जागरण होता है। बुद्धि और प्रज्ञा में मूल अन्तर यह है कि बुद्धि स्थूल और प्रज्ञा सूक्ष्म होती है। बुद्धि चुनाव करती है कि यह प्रिय है, यह अप्रिय है, किन्तु प्रज्ञा में चुनाव समाप्त हो जाता है। उसके जीवन में समता इस भाँति प्रतिष्ठित हो जाती है कि फिर उस चित्त में प्रियता और अप्रियता का प्रश्न ही नहीं उठता है। लेखक विमलकुमार चौरडिया के अनुसार जब प्रज्ञा का जागरण होता है तब समता स्वतः प्रकट होती है और लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, निंदा - प्रशंसा, जीवन-मरण आदि द्वन्द्वों में सम रहने की क्षमता विकसित होती है। 88
शारीरिक दृष्टि से- आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से शरीर को विश्राम देना आवश्यक है। कायोत्सर्ग एक प्रकार से शारीरिक क्रियाओं की निवृत्ति है। अनुचित मात्रा में शारीरिक प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप शरीर में निम्न विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं- 1. स्नायुओं में रक्त शर्करा कम होती है 2. लेक्टिव एसिड स्नायुओं में जमा होता है 3. लेक्टिव एसिड की वृद्धि होने पर उष्णता बढ़ती है 4. स्नायुतंत्र में थकान आती है 5. रक्त में प्राणवायु की मात्रा कम होती है। कायोत्सर्ग के द्वारा शारीरिक क्रियाओं में शिथिलता आने से शरीर के जो तत्त्व श्रम के कारण विषम हो जाते हैं वे पुनः समस्थिति में आ जाते हैं जैसे - 1. एसिड पुनः स्नायुशर्करा में परिवर्तित होता है 2. लेक्टिक एसिड का जमाव कम होता है 3. लेक्टिक एसिड की कमी से उष्णता में कमी होती है 4. स्नायु तन्त्र में स्फूर्ति आती है 5. रक्त में प्राणवायु की मात्रा बढ़ती है | 89
जैन सिद्धान्त की दृष्टि से देखा जाए तो मानव में 16 संज्ञाएँ हैं- 1. आहार 2. भय 3. मैथुन 4. परिग्रह 5. क्रोध 6. मान 7. माया 8. लोभ 9. ओघ 10. लोक 11. सुख 12. दु:ख 13. मोह 14. विचिकित्सा 15. शोक और 16. धर्म। इन संज्ञाओं के कारण मानव मन में आकांक्षा, मिथ्यादृष्टिकोण, प्रमाद, कषाय, योग चंचलता आदि आन्तरिक संक्लेश का उदय होता है। जिनके फलस्वरूप ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा, घृणा, भय, लोभवृत्ति, इच्छा, संघर्ष आदि दुर्विकल्प उत्पन्न होते हैं। चेतन मन पर इनका सतत प्रभाव बना रहता है। इस प्रभाव या दबाव