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296... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
चतुःशरण प्रकीर्णक में कहा गया है कि चारित्र सम्बन्धी जिन अतिचारों की शुद्धि प्रतिक्रमण से नहीं होती है, उनकी कायोत्सर्ग से यथाक्रम शुद्धि होती है। 87 मानसिक दृष्टि से कायोत्सर्ग श्वास एवं प्राण संयमन का अचूक उपाय है। श्वास स्थूल है और प्राण सूक्ष्म है। प्राण पर नियन्त्रण होने से अनासक्ति, अपरिग्रहवृत्ति, ब्रह्मचर्य आदि व्रत सहज में सध जाते हैं और दुष्प्रवृत्तियों में परिवर्तन आ जाता है। घृणा नष्ट हो जाती है और क्रोध अग्नि शान्त हो जाती है।
कायोत्सर्ग द्वारा श्वास के शिथिल होने से शरीर निष्क्रिय बन जाता है, प्राण शान्त हो जाते हैं और मन निर्विचार हो जाता है। श्वास की निष्क्रियता ही मन की शान्ति और समाधि है। धीमी श्वास धैर्य की निशानी है।
वर्तमान मनोवैज्ञानिक चिकित्सक मानसिक रोग दूर करने के लिए विगत कुछ वर्षों से कायोत्सर्ग, शरीर शिथिलीकरण शवासन आदि का प्रयोग करवाने लगे हैं, जिससे मानसिक तनाव के साथ-साथ शारीरिक तनाव भी दूर होते हैं और रोगी रोग से मुक्त हो जाता है।
कायोत्सर्ग की अवस्था में शरीर स्थिर एवं मन निस्पंद होने से पूर्वोपार्जित दोष जो कि अचेतन मन में सुप्त रूप में संचित रहते हैं वे अवसर प्राप्त करके सचेतन मन में उभर उठते हैं परिणामतः दोषी को अपने दोष स्पष्ट रूप से प्रतिभासित हो जाते हैं। उस समय साधक स्वयं के दोषों को दोष रूप में जानकर उनका त्याग करता है। कुछ देशों में यह पद्धति है कि अपराधी जब अपराध लेकर न्यायाधीश के पास पहुँचता है, तब न्यायाधीश उसे शांत चित्त से बैठने के लिए कहता है, किंचिद् समय स्थिर बैठने के पश्चात धीरे-धीरे उसका तनाव, ईर्ष्या, द्वेष आदि न्यून होने से अपनी भूल को स्वीकार कर लेता है इस तरह कुछ अपराधी प्रतिवाद किए बिना ही समाधान पाकर पुन: लौट जाते हैं। कायोत्सर्ग से आवेश और तनाव दोनों स्थितियाँ समाप्त हो जाती है । प्रायः कर व्यक्ति उक्त दोनों स्थितियों में सही निर्णय नहीं ले पाता है, यही कारण है कि व्यक्ति को न्यायालय की शरण में जाना पड़ता है। यदि आवेश की स्थिति समाप्त हो जाए तो न्यायालय में चलने वाले 60 प्रतिशत मुकदमें वैसे ही समाप्त हो जायेंगे। आचार्य महाप्रज्ञ मौखिक जानकारी के आधार पर लिखते है कि पश्चिम जर्मनी में एक प्रयोग किया जा रहा है। वहाँ जो व्यक्ति क्रिमिनल केस लेकर आता है उसे पाँच-छः घंटे बिठाया जाता है, फिर उससे पूछताछ।