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________________ 288...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में वह शांत और आनंद पूर्ण स्थिति में होता है। इससे आलस्य दूर होता है, शरीर की सुघड़ता और सौन्दर्य में वृद्धि होती है। युवक-युवति वर्ग के द्वारा प्रेक्षा के प्रयोग को अपनाया जाए तो वह उनकी आन्तरिक शक्ति को समायोजित कर सम्यक् दिशा प्रदान करता है।68 इस प्रकार हम पाते हैं कि कायोत्सर्ग और प्रेक्षाध्यान में पारस्परिक समानता और असमानता रही हुई है। कायोत्सर्ग-प्रेक्षाध्यान का प्राथमिक एवं अनिवार्य चरण है। दूसरे, प्रेक्षाध्यान के सद्भाव में ही कायोत्सर्ग सधता है, इस रीति से दोनों एक-दूसरे के पूरक एवं अन्योन्याश्रित है। कायोत्सर्ग और समाधि जैन आचार दर्शन में कायोत्सर्ग का अन्तिम ध्येय समाधि बतलाया है। कायोत्सर्गसूत्र में इस तथ्य को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। जैसा कि मूल पाठ का अर्थ है- प्रायश्चित्त करने के लिए, आत्म विशुद्धि के लिए, शल्य फलाकांक्षा से रहित होने के लिए एवं पाप कर्मों का नाश करने के लिए कायोत्सर्ग करता हूँ। इसके पश्चात कायोत्सर्ग करने की विधि बतलाई गई है, जिसमें काया से स्थिर रहना, वचन से मौन रहना और मन से ध्यानस्थ रहनाकहा गया है। दूसरे शब्दों में मन-वचन और काया से किसी तरह की प्रवृत्ति न करके अहंभाव या 'मैं' को विस्मृत कर देना अथवा अहंभाव से रहित हो जाना अथवा काया से असंग या अतीत हो जाना, कायोत्सर्ग है। यह समाधि की निकटतम या समाधिरूप अवस्था विशेष की स्थिति कही जा सकती है। जब तक 'मैं हूँ इस रूप में अपनाभास है तब तक देहाध्यास है, देह से तादात्म्य है, किन्तु 'मैं' या अहं का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। जब शुद्ध चेतन तत्त्व, अचेतन पदार्थ से सम्बन्ध स्थापित करता है तभी मैं का आभास होता है और उस समय मन-वचन और काया से किसी प्रकार की प्रवृत्ति या प्रयत्न किया जाता है। प्रयत्न से अहंभाव का जन्म होता है। अत: देहाभिमान से रहित होने के लिए अप्रयत्न होना आवश्यक है। मन, वचन और काया में अप्रयत्न (हलन-चलन का अभाव) होने से निर्विकल्प अवस्था की प्राप्ति होती है, जिसमें व्यक्त रूप में अहंभाव-देहभाव नहीं रहता है, किन्तु सत्ता रूप में वह संस्कार विद्यमान रहता है। जैन दर्शन में इस अवस्था को उपशान्त मोहनीय यथाख्यात चारित्र कहा गया है।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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