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कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ...281
से होती है। भोजन स्थूल है, पानी उससे सूक्ष्म है और श्वास दोनों से सूक्ष्म है। भोजन के बिना प्राणी कुछ महीनों तक जीवित रह सकता है, पानी के बिना कुछ दिनों तक, लेकिन श्वास के बिना कुछ क्षण भी जीवित रहना मुश्किल है। जीवन-यात्रा के लिए श्वास-प्रश्वास अनिवार्य तत्त्व हैं। श्वास से जीवन शक्ति को ग्रहण करते हैं। सामान्यत: प्राणी श्वास से शुद्ध वायु ग्रहण करता है प्रश्वास से स्वल्प मात्रा में अशुद्ध वायु बाहर निकालता है। श्वास से जो ग्रहण किया जाता है वह केवल शुद्ध प्राणवायु या ऑक्सीजन नहीं है। वायु के साथ अनेकानेक तत्त्व मिले रहते हैं। श्वास के साथ वे फेफड़ों में भी जाते हैं, किन्तु फेफड़ों के कोष्ठकों की कुछ अपनी विशेषता हैं, वे शरीर के लिए आवश्यक वायु को ग्रहण कर, अनावश्यक या दूषित वायु को प्रश्वास के द्वारा बाहर निकाल देते हैं। गृहीत प्राण वायु शरीर में व्याप्त हो जाती है। इस तरह व्यक्ति में श्वास-प्रश्वास की क्षमता बहुत अधिक है, इसका समुचित उपयोग श्वासप्रेक्षा के द्वारा ही सम्भव है।62
प्रेक्षा-केवलज्ञान का सशक्त आधार- श्वास प्रेक्षा कल्पनात्मक स्थिति नहीं है, अपितु सजगता पूर्ण चैतन्य का केवल उपयोग (ज्ञान) है। जब ज्ञानात्मक उपयोग राग-द्वेष से प्रभावित नहीं होता है तब उससे कर्म आकर्षित नहीं हो सकते। जब कर्मों का आकर्षण अर्थात आश्रव नहीं होता तब उस उपयोगात्मक स्थिति में केवल संवर की स्थिति रहती है, जिससे चेतना अबन्ध, परम-विशुद्ध बनती है। संवर के पश्चात जो कर्म स्थिति उदय वाली हैं वह शरीर, मन और चित्त पर प्रकंपन छोड़कर जर्जरित हो जाती है और इस प्रकार उदय-व्यय के प्रति प्रेक्षा में साक्षी रहकर चैतन्य विशुद्ध एवं विशुद्धतम बन जाता है।63
उपर्युक्त समग्र विवेचन से निर्विवादत: सिद्ध हो जाता है कि आत्मविशुद्धि एवं पूर्वार्जित कुसंस्कारों को क्षीण करने में उच्छ्वास प्रेक्षा एक उत्कृष्ट प्रक्रिया है। इस प्रयोग के द्वारा शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक जगत भी सशक्त और सुदृढ़ बनता है।
यहाँ इस प्रश्न का समाधान करना भी अत्यावश्यक है कि अतिचार शुद्धि के लिए श्वासोच्छ्वास का कालमान भिन्न-भिन्न क्यों रखा गया है? जैसे गमनागमन में लगने वाले दोषों से मुक्त होने के लिए 25 उच्छ्वास, ज्ञानाचार की विशुद्धि के लिए 27 उच्छ्वास, दैवसिक अतिचारों की शुद्धि के लिए 100 उच्छ्वास आदि