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________________ 280... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में प्रेक्षा- चैतन्य का विशुद्ध क्षण - प्रेक्षा चैतन्य का विशुद्ध क्षण है। चेतना का यह उपयोग मन और शरीर की स्थितियों के प्रति राग-द्वेष से मुक्त रहता है, उससे पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा होती है, नवीन कर्म का अनुबन्ध नहीं होता। जब श्वास की सजगता पूर्वक प्रेक्षा करते हैं तब मन भी सहज रूप से शान्त होने लगता है। मन और श्वास एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। जब श्वास - प्रेक्षा का अभ्यास करते हैं तब विचार और कल्पना विश्रान्त होने लगती है। 59 - प्रेक्षा मन परिष्कार का केन्द्र- मानसिक विचार को परिपुष्ट बनाने के लिए प्रेक्षा का प्रयोग अतीव आवश्यक है। प्रेक्षा से स्मृति चिन्तन और कल्पनाओं में परिष्कार होने लगता है। स्मृतिकोष में संचित घटनाएँ अथवा विचार जब वर्तमान क्षण में उतरते हैं तब प्रेक्षा का अभ्यासी उनके प्रति यथार्थ दृष्टि का उपयोग करता है 100 प्रेक्षा - सम्यक्दर्शन का उत्पत्ति स्थल- प्रेक्षा से सम्यग् दर्शन की उपलब्धि होती है। प्रेक्षा कल्पना और आरोपित वस्तु एवं घटना से मुक्त कर यथार्थ दृष्टि को उपलब्ध करवाता है, जबकि अयथार्थ दृष्टि विभ्रम पैदा कर क्लेश का कारण बनती है। वस्तु और घटना में सुख-दुःख, प्रियता - अप्रियता का भाव नहीं होता है, वह तो व्यक्ति के मन से पैदा होते हैं। जब व्यक्ति का दृष्टिकोण सम्यक् बन जाता है तब कोई कारण नहीं कि उसमें द्वन्द्व उत्पन्न हो । प्रेक्षा- दृष्टिकोण परिवर्तन का केन्द्र- प्रेक्षा से दृष्टिकोण में परिवर्तन होता है। दृष्टिकोण ही व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करता है। दृष्टि की अयथार्थता ही जीवन में क्लेश, विषमता और अशान्ति उत्पन्न करती है। दृष्टिकोण यथार्थ होने पर उपचार भी शीघ्र हो जाता है। प्रेक्षा का उद्देश्य चिकित्सा करना नहीं है, किन्तु उससे अन्तरंग स्थिति सम होने से बाह्य स्थिति स्वतः सम होने लगती है और रुग्णता भी दूर होने लगती है । प्रेक्षा की साधना मानसिक और भावात्मक बीमारियों को विशेष रूप से प्रभावित करती है। इससे शरीर स्वस्थ, मन प्रसन्न व चैतन्य शक्ति अनावृत्त होती है। 61 प्रेक्षा शक्ति जागरण की प्रक्रिया- हमारा शरीर छोटे-छोटे असंख्य कोषों (Cells) से बना है। जब हम शारीरिक, मानसिक या अन्य कोई क्रिया करते हैं तो उससे ये कोष क्षीण होते हैं और टूटते हैं। क्षीण होने और टूटने की इस क्रिया से हमें थकान अनुभव होती है। इसकी पूर्ति श्वास, जल और भोजन
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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