SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ...279 जैनागमों में आयुष्य का माप वर्षों, महीनों, दिनों एवं मिनटों में नहीं अपित् श्वासोच्छ्वास में माना गया है। मनुष्य जितना तेज चलता है, जितना अधिक एवं जोर से बोलता है, जितना ज्यादा शयन करता है, जितना ज्यादा भोग-विलास एवं व्यसनों में संलग्न रहता है, उसकी सांस भी उतनी ही तीव्र गति से चलती है और वह अपनी संचित आयुकर्म की पूँजी को थोड़े समय में ही भोग लेता है। जो व्यक्ति चलने, बैठने, बोलने, खाने-पीने एवं भोग भोगने में जितना अधिक संयम एवं विवेक रखता है वह उतने ही अधिक काल तक जीवित रहता है, क्योंकि उसके श्वासोच्छ्वास तेजी से नहीं चलते। अतिचारशुद्धि के लिए कायोत्सर्ग एवं श्वासोच्छ्वास प्रेक्षा का जो निर्देश हैं उसका महत्त्वपूर्ण समाधान यह है कि श्वासप्रेक्षा- एक अद्भुत प्रक्रिया है। आचार्य महाप्रज्ञ जी एवं उस परम्परा के मेधावी मुनियों ने इस सन्दर्भ में बहुत कुछ लिखा है। उनकी वर्णन शैली को आधार बनाकर कहें तो प्रेक्षा जागरूकता की प्रक्रिया है। जागरूकता से कषाय उपशान्त होने लगते हैं। कषाय के उपशमन से चित्त की निर्मलता बढ़ती है। प्रेक्षा के द्वारा कठिन से कठिन समस्याओं का अन्त और आत्मिक गणों की उपलब्धि होती है। प्रेक्षा की अर्थयात्रा पर विचार किया जाए तो प्रेक्षा तीसरा नेत्र है, साध्य को पाने का सोपान है, समता की सरिता है, समाधि है, समाधान है, योग है, धर्म है, सत्य है, ज्ञान है, विज्ञान है, आनन्द है, प्रेरणा है, पूर्णता है, दीक्षा है, परीक्षा है, जीवन को उन्नत बनाने का अनुपम ग्रन्थ है, अन्तर दृष्टि है, राग-द्वेष रहित वर्तमान क्षण है, अन्तर की प्रखर ज्योति हैं, जिससे अनन्त-अनन्त काल से ठहरा हुआ सघन अन्धकार विलीन हो जाता है। प्रेक्षा वह संजीवनी है जिससे मानव को पुनः जीवित किया जा सकता है। प्रेक्षा वह गारूड़ी विद्या है जिससे कठोर नाग पाश बन्धन से बन्धे जीव को मुक्त किया जा सकता है। प्रेक्षा के प्रयोग का तात्पर्य है यथार्थ की अनुभूति करना, अनुभूत सत्य का साक्षात्कार करना।58 प्रेक्षा-स्वास्थ्य और प्रसन्नता का आधार- प्रेक्षा चैतन्य की वह शक्तिशाली किरण है जिससे मूर्छा से आया आवरण तत्क्षण क्षीण हो जाता है। प्रेक्षा स्व का निरीक्षण एवं आत्मा का अवलोकन करने की वह अमूल्य विधि है जिससे चित्तवृत्ति निर्मल होती है, आत्मिक प्रसन्नता का जागरण होता है और निरोग स्वास्थ्य की उपलब्धि होती है।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy