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________________ कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ...277 निर्धारित उच्छ्वास की प्रेक्षा करने का ही प्रतिपादन है। प्रबोधटीका में कहा गया है कि दैवसिक आदि अतिचारों का समुचित संग्रह करने के लिए कायोत्सर्ग करना आवश्यक है। कायोत्सर्ग की स्थिति में शरीर के अंगोपांग निश्चल रहे, वाणी मौन रहे और चित्त की समस्त वृत्तियाँ एकाग्र होकर अतिचारों के शोधन का कार्य करें, अन्यथा अतिचारों का समुचित संग्रह नहीं हो सकता। दूसरा निर्देश यह दिया गया है कि यदि कायोत्सर्ग अतिचारों की शुद्धि के निमित्त किया जाता हो, तो उन-उन अतिचारों का यथार्थ रूप से शोधन और पश्चात्ताप पूर्वक स्मरण करना चाहिए। जैसे- ईर्यापथिक विराधना के निमित्त किया जाने वाला कायोत्सर्ग हो, तो उसमें तत्सम्बन्धी अतिचारों का चिंतन करना चाहिए, भक्तपान या शय्यासनादि निमित्त किया जाने वाला कायोत्सर्ग हो, तो उसमें तद्विषयक अतिचारों का चिंतन करना चाहिए और दर्शनशुद्धि निमित्त किया जाने वाला कायोत्सर्ग हो, तो उसमें जिस-जिस प्रकार से दर्शन की विराधना हुई हो, उसका चिंतन करना चाहिए। शास्त्रकारों ने उस विशुद्धि के लिए उच्छ्वास का कालमान बताया है।57 । यहाँ पुनः प्रश्न उठता है कि श्वासोच्छ्वास के साथ दोष विशुद्धि का क्या सम्बन्ध है? अथवा श्वास प्रेक्षा से आत्मविशुद्धि कैसे सम्भव है? इस पक्ष को अनेक बिन्दुओं से समाहित किया जा सकता है श्वासोश्वास की क्रिया एकेन्द्रिय जीव से लेकर पंचेन्द्रिय जीव तक समस्त प्राणियों को होती हैं, परन्तु उनकी उच्छ्वास क्रिया में बहुत अन्तर होता है। जीवन विकास जितना अल्प हो अथवा दुःख का परिमाण जितना अधिक हो, श्वासोच्छ्वास क्रिया उतनी शीघ्रता से होती है, और जीवन विकास अधिक मात्रा में हो या दुःख का परिमाण अल्प हो, तो श्वासोच्छ्वास का परिमाण उतना मन्द गति से होता है, जैसे नरकगति के जीव उच्छ्वास क्रिया निरन्तर करते हैं, क्योंकि वहाँ असीमित दुःख है। सर्वार्थसिद्धि विमान के देव वही क्रिया तैंतीस पक्ष में करते हैं, कारण कि वहाँ असीम सुख है। मनुष्य की श्वासोच्छ्वास क्रिया अनियत रूप से होती है। यदि शांत प्रकृति का मनुष्य है तो उसकी उच्छ्वास क्रिया मन्दगति पूर्वक होती है, इसके विपरीत क्रोधी, कामी, द्वेषी आदि दुष्ट स्वभावी व्यक्ति की उच्छ्वास क्रिया तेज गति से होती है। प्रत्येक प्राणी का आयुष्य उच्छ्वास क्रिया पर टिका हुआ है। हर आत्मा
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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