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________________ 274... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में यहाँ यह भी जानने योग्य है कि दिगम्बर मतानुसार 27 उच्छ्वासों में नमस्कार मन्त्र की नौ आवृत्तियाँ होती हैं, क्योंकि तीन उच्छ्वासों में एक नमस्कार महामंत्र का ध्यान किया जाता है जैसे- 'नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं'- ये दो पद एक उच्छ्वास में, 'नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं'ये दो पद दूसरे उच्छ्वास में तथा 'नमो लोए सव्वसाहूणं' - यह एक पद तीसरे उच्छ्वास में- इस प्रकार तीन उच्छ्वासों में एक नमस्कारमन्त्र का ध्यान पूर्ण होता है। इस उद्धरण से स्पष्ट होता है कि दिगम्बर परम्परा में कायोत्सर्ग काल में सम्पूर्ण नमस्कार मन्त्र का स्मरण नहीं किया जाता है, केवल पंच परमेष्ठी के पाँच पदों का ही ध्यान करते हैं। दूसरे, श्वासोच्छ्वास के परिमाण में लोगस्स पाठ का स्मरण न करके लगभग नमस्कारमन्त्र का ही ध्यान करते हैं। 48 आचार्य अमितगति आदि का अभिमत है कि श्रमण को अहोरात्र में कुल अट्ठाईस बार कायोत्सर्ग करना चाहिए। स्वाध्यायकाल में 12 बार, वन्दनकाल में 6 बार, प्रतिक्रमणकाल में 8 बार, योगभक्ति काल में 2 बार - इस प्रकार कुल अट्ठाईस बार कायोत्सर्ग करना चाहिए | 49 आचार्य अपराजितसूरि का मन्तव्य है कि हिंसा आदि पाँच अतिचारों में एक सौ आठ उच्छ्वास का कायोत्सर्ग करना चाहिए। कायोत्सर्ग करते समय मन की चंचलता से या उच्छ्वासों की संख्या की परिगणना में संदेह समुत्पन्न हो जाये तो आठ उच्छ्वास का अधिक कायोत्सर्ग करना चाहिए | 50 उपर्युक्त वर्णन से सिद्ध है कि जैन धर्म की श्वेताम्बर - दिगम्बर दोनों परम्पराओं में अत्यन्त प्राचीन काल से श्रमण साधकों के लिए कायोत्सर्ग का विधान रहा है। उत्तराध्ययनसूत्र के श्रमण सामाचारी अध्ययन में 1 और दशवैकालिक चूलिका में श्रमण को पुनः पुनः कायोत्सर्ग का निर्देश दिया गया है। 52 कायोत्सर्ग और प्रत्याहार यदि कायोत्सर्ग और अष्टांग योग का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो कायोत्सर्ग की स्थिति प्रत्याहार के समकक्ष प्रतीत होती है। प्रत्याहार में बहिर्मुख इन्द्रियों को उसके अपने विषयों से हटाकर अन्तर्मुखी करते हैं। दूसरे, प्रत्याहार योग की साधना के लिए यम, नियम, आसन एवं प्राणायाम का अभ्यास होना आवश्यक है। इसी तरह कायोत्सर्ग के लिए भी यम, नियम आदि की साधना अपेक्षित है।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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