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कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ... 273
कायोत्सर्ग करना चाहिए। यद्यपि आचारदिनकर में यह निर्देश नहीं दिया गया है। कि इस समय कितने श्वासोच्छ्वास या लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए किन्तु परम्परा से चार लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग किया जाता है।
• प्रायश्चित्त विशोधन के लिए, उपद्रव निवारण के लिए, श्रुतदेवता के आराधन के लिए एवं समस्त चतुर्निकाय देवताओं के आराधन के लिए भी चार लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग किया जाता है ।
• गमनागमन में लगे दोषों की आलोचना करते समय सभी जगह पच्चीस उच्छ्वास या एक चतुर्विंशतिस्तव का कायोत्सर्ग करना चाहिए ।
• अरिहंत परमात्मा को प्रणाम करने के लिए सौ उच्छ्वास या चार लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• उत्कृष्ट देववन्दन एवं श्रुतदेवता आदि की आराधना के लिए सम्पूर्ण चतुर्विंशतिस्तव का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• स्वाध्याय हेतु प्रस्थापना करते समय एक नमस्कारमंत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• अभिग्रहधारी साधु अपने अभिग्रह के अनुसार चतुर्विंशतिस्तव या नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करें।
• सम्यक्त्व व्रतारोपण, बारहव्रतारोपण, षाण्मासिक सामायिक आरोपण, नन्दीक्रिया, योगोद्वहन, वाचना आदि के निमित्त एक चतुर्विंशतिस्तव का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• प्रतिक्रमण के दौरान ज्ञानाचार की विशुद्धि के लिए एक लोगस्ससूत्र, दर्शनाचार की विशुद्धि के लिए एक लोगस्ससूत्र, चारित्राचार की शुद्धि के लिए दो लोगस्ससूत्र, श्रुतदेवता, क्षेत्रदेवता एवं भुवन देवता की आराधना के लिए एक-एक नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग किया जाता है।
• जघन्य, मध्यम एवं उत्कृष्ट देववन्दन के समय अमुक तीर्थंकर, चौबीस तीर्थंकर, श्रुतज्ञान एवं सम्यक्त्वी देवी-देवताओं की आराधना निमित्त एक - एक नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग किया जाता है | 47
• दिगम्बर परम्परा के आचार्य अमितगति के अनुसार दिनभर में किए गए दुष्कार्यों से निवृत्त होने के लिए 108 और रात्रिगत दुष्कर्मों से परिशुद्ध होने के लिए 54 श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करना चाहिए। अन्य विषयक अतिचारों से आत्मविशुद्धि करने के लिए 27 श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करना चाहिए।