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कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ... 269
कायोत्सर्ग रूप माने गये हैं इससे समझना चाहिए कि कायोत्सर्ग में सम्पूर्ण लोगस्स पाठ का स्मरण नहीं किया जाता है। यदि पच्चीस श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करना हो तब 'चंदेसु निम्मलयरा' तक और सत्ताईस श्वासोच्छ्वास का कायोत्सर्ग करना हो तब 'सागरवर गंभीरा' तक लोगस्स पाठ का स्मरण करना चाहिए। दूसरे, एक लोगस्स के 25 चरण = 6.5 श्लोक होते हैं, तब दैवसिक प्रतिक्रमण की अपेक्षा चार लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करने पर 6.5 x 4 = 25 श्लोक होते हैं। इसी तरह रात्रिक आदि प्रतिक्रमण के सम्बन्ध में भी समझना चाहिए।
वार्षिक प्रतिक्रमण में 40 लोगस्स का कायोत्सर्ग होता है, इसको 6.5 से गुणा करने पर 6.5 x 40 = 250 श्लोक होते हैं। 40 लोगस्स के ऊपर एक नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग भी करते हैं। एक नमस्कारमन्त्र = 2 श्लोक होते हैं। ये दो श्लोक मिलाने से 252 श्लोक और 1008 श्वासोश्वास होते हैं।
8 चरण, 8 चरण
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यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि जो व्यक्ति दिनकृत अतिचारों के प्रायश्चित्त रूप कायोत्सर्ग करता है उसे पक्ष, चातुर्मास एवं वार्षिक कायोत्सर्ग भी निश्चित रूप से करना चाहिए, क्योंकि वह उसके विशेष शुद्धि के लिए हैं, जैसे प्रतिदिन गृह आदि की सफाई की जाती है फिर भी दीपावली आदि पर्व दिनों में विशेष सफाई करते हैं, प्रत्येक वस्तु की सफाई करते हैं। इसी तरह वार्षिक आदि के कायोत्सर्ग निःसन्देह करणीय है ।
जो लोग यह समझते हैं कि मात्र सांवत्सरिक (वार्षिक) प्रतिक्रमण करने से वर्ष भर में किए गए पाप कर्मों से मुक्त हो जायेंगे, अतः दिवस आदि में किए गए पाप कार्यों से विशुद्ध बनने के लिए प्रतिदिन या पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण कायोत्सर्ग करने की जरूरत नहीं है। वार्षिक (सांवत्सरिक) प्रतिक्रमण भी शुद्ध मन से कर लेंगे तो वर्षभर के सभी पाप धूल जायेंगे, ऐसा मानना अनुचित है। क्योंकि, जैसे एक घर प्रतिदिन साफ किया जाए और दूसरा चार मास या वर्षभर में साफ किया जाए तो दोनों घरों की स्वच्छता और पवित्रता में अन्तर होगा, वैसे ही प्रतिदिन किए जाने वाले प्रतिक्रमण में एवं वर्षभर आदि में किए जाने वाले प्रतिक्रमण की शुद्धि में अन्तर होता है । अतः मोक्षार्थी को दैवसिक आदि सभी पापों (दोषों) की यथाविधि शुद्धि करनी चाहिए।