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________________ 25 100 50 50 500 125 500 1008 100 100 50 50 300 75 400 100 400 268...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए। श्वेताम्बर परम्परानुसार वह सारणी निम्न प्रकार है-40 उच्छवास चतुर्विंशतिस्तव गाथा चरण 1. दिवस 100 2. रात्रि 12.5 3. पक्ष 300 12 75 300 4. चातुर्मास 5. संवत्सर 1008 252 दिगम्बर परम्परानुसार कायोत्सर्ग सारणी निम्नलिखित है1. दिवस 25 2. रात्रि 12.5 3. पक्ष 300 4. चातुर्मास 5. संवत्सर 500 125 500 उक्त तालिका सम्बन्धी किंचिद् स्पष्टीकरण इस प्रकार है दिनभर में लगे हुए अतिचारों (दोषों) से स्वयं को मुक्त करने के लिए प्रत्येक साधक को 100 श्वासोश्वास अथवा चार लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए। इस परिमाण में कायोत्सर्ग करने वाला साधक दिवस-कृत सामान्य दोषों से निवृत्त हो जाता है। इसी उद्देश्य से दैवसिक प्रतिक्रमण में छह आवश्यक रूप क्रिया पूर्ण होने के बाद दैवसिक प्रायश्चित्त की विशुद्धि के निमित्त चार लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग किया जाता है। इसी तरह रात्रिभर में लगे हुए दोषों से शुद्ध होने के लिए 50 श्वासोश्वास या दो लोगस्ससूत्र का चिन्तन करना चाहिए। एक पक्ष (पन्द्रह दिन) में लगे हुए दोषों से परिशुद्ध होने के लिए तीन सौ श्वासोश्वास या बारह लोगस्ससूत्र, चार मास के भीतर लगे हुए दोषों से निवृत्त होने के लिए पाँच सौ श्वासोश्वास या बीस लोगस्ससूत्र तथा वर्षभर में लगे हुए दोषों से परिमुक्त होने के लिए एक हजार आठ श्वासोश्वास या चालीस लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।41 ___ लोगस्ससूत्र के सात श्लोक और प्रत्येक श्लोक के चार चरण होने से अट्ठाईस चरण होते हैं। यहाँ लोगस्ससूत्र के पच्चीस अथवा सत्ताईस चरण ही 20
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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