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कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ...259 चिंतन करना ध्यान है और ध्यान कायोत्सर्ग पूर्वक होता है। कायोत्सर्ग में लगने वाले दोष ___ कायोत्सर्ग, साधना पद्धति का विशिष्ट प्रयोग है। यदि तथाकथित विधि से इसका परिपालन किया जाये तो, साधक के लिए अनन्य निर्जरा का हेतु बनता है। अत: कतिपय दोषों से रहित कायोत्सर्ग करना चाहिए। श्वेताम्बर आचार्यों ने कायोत्सर्ग के सम्भावित 19 दोष बतलाये हैं, वे निम्न हैं___ 1. घोटक- जैसे घोड़ा एक पैर को उठाकर या झुकाकर खड़ा होता है वैसे ही एक पैर का घुटना झुकाकर खड़े रहना घोटक दोष है।
2. लता- हवा के वेग से लता के समान शरीर के अवयवों को हिलाते हुए कायोत्सर्ग करना, लता दोष है। _3. स्तम्भ कुड्य- स्तम्भ या दीवार का सहारा लेकर अथवा स्तम्भ के समान शून्य चित्त होकर कायोत्सर्ग करना स्तम्भ कुड्य दोष है।
4. माल- चौकी आदि के ऊपर खड़े होकर अथवा सिर के ऊपर छत, रज्जू वगैरह का आश्रय लेकर अथवा सिर का टेका देकर कायोत्सर्ग करना माल दोष है।
5. शबरी- जिस प्रकार नग्न भीलनी अपने गुप्तांग को छुपाने का प्रयत्न करती है उसी प्रकार दोनों जंघाओं को पीड़ित करके कायोत्सर्ग में स्थित रहना शबरी दोष है।
6. वधू- कुलवधू की तरह मस्तक झुकाकर कायोत्सर्ग करना वधू दोष है।
7. निगड़- बेड़ी पहने हुए की तरह दोनों पैर दूर-दूर या अत्यन्त निकट रखकर कायोत्सर्ग करना निगड़ दोष है।
___8. लम्बोत्तर- प्रवचनसारोद्धार के अनुसार नाभि से ऊपर और घुटने से नीचे तक चोलपट्टा पहन कर कायोत्सर्ग करना लम्बोत्तर दोष है। मूलाचार टीका के अनुसार नाभि से ऊपर का भाग लम्बा करके या शरीर को अधिक ऊँचा करके या अधिक झुका करके कायोत्सर्ग करना लम्बोत्तर दोष है।
9. स्तन- डांस, मच्छर आदि के डंस के भय से या उनका रक्षण करने के लिए चोलपट्ट से स्तन भाग को ढ़ककर कायोत्सर्ग करना स्तन दोष है। मूलाचार के टीकानुसार स्तन भाग पर दृष्टि रखते हुए कायोत्सर्ग करना स्तनदृष्टि दोष है।