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260... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
10. ऊविका - यह दोष बाह्य एवं आभ्यन्तर की अपेक्षा दो प्रकार का है(i) बाह्य ऊविका - गाड़ी की उध की तरह एड़ियों को सम्मिलित कर पैरों के पंजे दूर रखते हुए कायोत्सर्ग करना। (ii) आभ्यन्तर ऊविका- दोनों पैरों के अंगुष्ठों को मिलाकर एवं एड़ियों को फैलाकर कायोत्सर्ग करना ऊविका दोष है।
11. संयती - साध्वी की तरह चोलपट्ट या चद्दर से कंधा ढककर कायोत्सर्ग करना संयती दोष है।
12. खलीन- घोड़े के लगाम की तरह रजोहरण या चरवले को पकड़कर कायोत्सर्ग करना अथवा लगाम से पीड़ित हुए घोड़े के समान मस्तक भाग को ऊँचा-नीचा करते हुए कायोत्सर्ग करना खलीन दोष है।
13. वायस - कौएँ के समान चारों दिशाओं में दृष्टि घुमाते हुए कायोत्सर्ग करना वायस दोष है ।
14. कपित्थ- पहने हुए वस्त्र पसीने से मैले हो जाएंगे, इस भय से वस्त्रों का गोपन करके कायोत्सर्ग करना । दिगम्बर मतानुसार कैथे के फल के समान मुट्ठी बंद करके कायोत्सर्ग करना कपित्थ दोष है।
15. शिरकंप - यक्षाविष्ट की भाँति सिर हिलाते या धुनाते हुए कायोत्सर्ग करना शिरकंप दोष है।
16. मूक- मूक व्यक्ति के समान हूं-हूं करते हुए अथवा मुख विकृत एवं नाक सिकोड़ते हुए कायोत्सर्ग करना मूक दोष है।
17. अंगूलिका - भ्रू - नमस्कार मंत्र आदि गिनने के लिए अंगुलियों का आलम्बन लेते हुए या बार-बार पलक झपकाते हुए या भौंहों को चलाते हुए या पैरों की अंगुलियाँ नचाते हुए कायोत्सर्ग करना अंगूलिका - भ्रू दोष है।
18. वारूणी - शराबी की तरह नमस्कार मंत्र गिनते समय बड़बड़ाहट करते हुए या मदिरापीने वाले के समान झूमते हुए कायोत्सर्ग करना वारूणी दोष है।
19. प्रेक्षा- वानर की तरह पार्श्व भाग को देखते हुए या होठ फड़फड़ाते हुए कायोत्सर्ग करना प्रेक्षा दोष है | 31
दिगम्बर आचार्यों ने तीसरे वन्दन आवश्यक की भाँति कायोत्सर्ग के भी बत्तीस दोष स्वीकार किये हैं। उनमें क्वचित दोष श्वेताम्बर मान्य ही है। पाठक वर्ग की जानकारी के लिए 32 दोषों के नाम इस प्रकार हैं