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________________ कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ...257 6. निषण्ण-निषण्ण बैठे हुए आर्त्त-रौद्र ध्यान में निरत रहना। यहाँ द्रव्यत: निषण्ण और भावतः भी निषण्ण है। 7. निपन्न-उच्छ्रित . लेटे हुए धर्म ध्यान एवं शुक्ल ध्यान में संलग्न होना। सोए हुए कायोत्सर्ग करना- द्रव्यत: निपन्न है तथा शुभ ध्यान करना- भावत: उच्छ्रित है। 8. निपन्न लेटे हुए धर्म-शुक्ल अथवा आर्त्त-रौद्र किसी ध्यान में संलग्न नहीं होना। यहाँ द्रव्यतः निपन्न और भावत: शून्य है। 9. निपन्न-निपन्न लेटे हुए आर्त एवं रौद्र ध्यान में निरत रहना। इस कोटि का साधक द्रव्य और भाव दोनों से निपन्न (सुप्त) है। इनमें से पहला, चौथा एवं सातवाँ प्रकार ग्राह्य है।25 षड्विध- दिगम्बर परम्परा के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ मूलाचार में निक्षेप दृष्टि से कायोत्सर्ग के छह प्रकार उल्लिखित हैं 1. नाम कायोत्सर्ग- तीक्ष्ण, कठोर आदि पापयुक्त नामकरण के द्वारा उत्पन्न हुए अतिचारों का शोधन करने हेतु कायोत्सर्ग करना अथवा ‘कायोत्सर्ग' ऐसा नामोच्चारण मात्र करना, नाम कायोत्सर्ग है। 2. स्थापना कायोत्सर्ग- अशुभ या सरागमूर्ति की स्थापना द्वारा हुए अतिचारों के शोधन निमित्त कायोत्सर्ग करना अथवा कायोत्सर्ग से परिणत मुनि के प्रतिमा आदि की स्थापना करना, स्थापना कायोत्सर्ग है। 3. द्रव्य कायोत्सर्ग- सदोष द्रव्य के सेवन से उत्पन्न हुए अतिचारों को दूर करने के लिए कायोत्सर्ग करना अथवा कायोत्सर्ग के वर्णन करने वाले प्राभृत (अध्याय प्रमुख) का ज्ञानी, किन्तु उसके उपयोग से रहित जीव और उसका शरीर द्रव्य कायोत्सर्ग है। ___4. क्षेत्र कायोत्सर्ग- सदोष क्षेत्र के सेवन से होने वाले अतिचारों को दूर करने के लिए कायोत्सर्ग करना अथवा कायोत्सर्ग से परिणत हुए मुनि से सेवित स्थान में कायोत्सर्ग करना, क्षेत्र कायोत्सर्ग है।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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