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________________ 254... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में कायोत्सर्ग के पर्यायवाची जैन साहित्य में काय + उत्सर्ग के अनेक नामान्तर उल्लिखित हैं। आवश्यकनिर्युक्तिकार भद्रबाहुस्वामी ने काय और उत्सर्ग के भिन्न-भिन्न पर्याय बतलाये हैं। काय शब्द के निम्न अर्थ हैं- काय, शरीर, देह, बोन्दी, चयः उपचय:, संघात, उच्छ्रय, समुच्छ्रय, कलेवर, तनु, पाणु आदि। 14 उत्सर्ग शब्द के एकार्थवाची इस प्रकार हैं- उत्सर्ग, व्युत्सर्ग, उज्झना, अवकिरण, छर्दन, विवेक, वर्जन, त्याग, उन्मोचना, परिशातना, शातना आदि ।15 इन पर्यायवाची नामों में काय, शरीर, देह, उत्सर्ग और व्युत्सर्ग शब्द अधिक प्रचलित हैं। वर्तमान में काया के स्थान पर देह और शरीर शब्द का अधिक प्रयोग होता है। इस दृष्टि से कायोत्सर्ग का अर्थ हुआ - देह का उत्सर्ग, शरीर का उत्सर्ग । शास्त्रकारों ने व्युत्पत्ति सिद्ध यह अर्थ किया है - जिसमें अस्थि आदि पदार्थों का संग्रह होता है वह काय है 16 अथवा जो अन्न आदि से वृद्धि को प्राप्त होता है वह काय है 17 उस काया के ममत्व का त्याग करना कायोत्सर्ग कहलाता है। यहाँ काय शब्द से तात्पर्य स्थूल काया नहीं है, अपितु उसके प्रति रहा हुआ ममत्व या तत्सम्बन्धी मोह भाव है। आवश्यक टीका में कहा गया है कि व्यापार युक्त काया का परित्याग करना अर्थात स्थान, मौन और ध्यान के सिवाय काया से अन्य प्रवृत्ति नहीं करना यही कायोत्सर्ग का भावार्थ है । 18 कायोत्सर्ग के प्रकार कायोत्सर्ग ध्यान की प्रारम्भिक एवं मूल अवस्था है। पूर्वधर आचार्यों ने इस पद्धति के अनेक मार्ग निरूपित किये हैं। द्विविध- चूर्णिकार जिनदासगणी ने कायोत्सर्ग के दो प्रकार बतलाये हैं1. द्रव्य कायोत्सर्ग और 2. भाव कायोत्सर्ग। 1. द्रव्य कायोत्सर्ग - शारीरिक चेष्टाओं का निरोध करना, चंचल वृत्तियों का परिहार करना, देह को स्थिर करना आदि द्रव्य कायोत्सर्ग है। 2. भाव कायोत्सर्ग - धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान में रमण करना, अन्तश्चेतना को पवित्र विचारों से आप्लावित करना भाव कायोत्सर्ग है। 19
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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