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वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण ...231
जैसे कि वंदन करने से आन्तरिक द्वन्द दर होते हैं जिससे अन्तरंग भाव विशुद्ध बनते हैं और पारिवारिक सम्बन्धों में माधुर्य एवं औदार्य की वृद्धि होती है। समाज में भी सरलता, परस्पर सहयोग एवं सौजन्यता से आपसी मतभेदों एवं मनमुटाव को समाप्त किया जा सकता है। कहते हैं “नमे ते सहुने गमे” इस प्रकार झुकने वाला व्यक्ति सभी को प्रिय होता है जिसके माध्यम से वह अपने जीवन में उत्तरोत्तर विकास कर सकता है। इसी के साथ मन के आवेश एवं आवेगों को समाप्त करने, क्रोध को नियंत्रित करने तथा अहंकार एवं दंभ को बाहर निकालने का भी यह सर्वश्रेष्ठ साधन है। इस प्रकार वंदन यह जीवन में संतुलन स्थापित करते हुए आध्यात्मिक एवं भौतिक उत्कर्ष को देने वाला है। उपसंहार
जिनोपदिष्ट धर्म का मूल विनय है। वह दो प्रकार का है- निश्चय और व्यवहार। आत्मा के रत्नत्रय रूप गुण का आराधन करना निश्चय विनय है और रत्नत्रय धारी साधुओं का बहुमान आदि करना व्यवहार विनय है। मोक्षमार्ग में दोनों का अमूल्य स्थान है। ज्ञानप्राप्ति के लिए गुरु का विनय अपरिहार्य है। गुरु विनय के माध्यम से ग्रहण करने योग्य और आचरण करने योग्य दो प्रकार की शिक्षा प्राप्त होती है, जो फलित रूप में अविचल मोक्ष सुख को प्रदान करती है। इसलिए मोक्ष या निर्वाण सुख की इच्छा रखने वाले साधक को समस्त प्रकार से गुरु का विनय करना चाहिए। जो उपासक यथाविधि गुरु का विनय नहीं करता है और मोक्ष की कामना रखता है वह जीवित रहने की इच्छा होने पर भी अग्नि प्रवेश का कार्य करता है अर्थात गुरु का यथार्थ विनय नहीं करने वाला स्वयं की साधना के फल से भ्रष्ट हो जाता है और मानव भव आदि अमूल्य सामग्री से पराजित हो जाता है। धर्मरत्नप्रकरण में कहा गया है कि गुरु के चरणों की सेवा करने में निरत और गुर्वाज्ञा पालन करने में तत्पर साधु ही चारित्र का भार वहन करने में समर्थ होता है, अन्य नहीं, यह कथन नियम से है।106 ___ कदाच गुरु मंद बुद्धिवाले हों, अल्प वयस्क हों या अल्प ज्ञानी हो, फिर भी विनीत शिष्य को उनका यथोचित विनय करना चाहिए। अन्यथा बांस के