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230... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
के माध्यम से विनय गुण की वृद्धि के साथ-साथ अन्य आन्तरिक गुणों का भी वर्धन होता है।
वर्तमान के सामाजिक परिवेश को देखते हुए यदि वंदन आवश्यक को सामाजिक उत्कर्ष का एक महत्त्वपूर्ण घटक कहें तो कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। अभिवादन, स्तुति, नमन, प्रणाम आदि कई अर्थों में वंदन को लिया जाता है। समाज में पारस्परिक सम्बन्ध एवं मधुरता बनाए रखने के लिए तथा आपसी सामंजस्य एवं सौजन्य स्थापित करने हेतु सरलता, लघुता, ऋजुत्ता विनम्रता आदि गुण आवश्यक है। जीवन में इन गुणों का अर्जन वंदन के माध्यम से हो सकता है। विनयी व्यक्ति को उत्तमोत्तम वस्तुएँ प्राप्त हो सकती है। आज समाज में युवा वर्ग में बड़ों के प्रति आदर - समर्पण का भाव समाप्त होता जा रहा है। लोग वंदन आदि करना भार स्वरूप समझते हैं, कईयों को अपने ड्रेसिंग की चिंता होती है कि झुकने से उनके कपड़ों में सल पड़ जाएंगे और इसलिए झुकने की मात्र रस्म अदा करते हैं किन्तु ऐसी औपचारिकता से विनय गुण उत्पन्न नहीं होता और इन्हीं कारणों से आज पारिवारिक अलगाव की स्थिति बन रही है। गुरु भगवन्तों को भी कई लोग मात्र हाथ जोड़कर बैठ जाते हैं उनके प्रति विधि युक्त आदर - विनय का ध्यान नहीं रखते और इसी कारण आज सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है।
यदि आधुनिक जगत की समस्याओं के संदर्भ में वंदन आवश्यक की महत्ता पर चिंतन करें तो आज शिक्षक वर्ग एवं विद्यार्थी वर्ग तथा मालिक एवं कर्मचारियों के बीच जो भेद रेखा बढ़ रही है उसका एक मुख्य कारण विनय एवं वात्सल्य गुण का अभाव है। इसी कारण पारिवारिक दूरियाँ एवं Generation Gap भी बढ़ रहा है। आज ज्ञान के क्षेत्र में तो मनुष्य प्रगति कर रहा है । परन्तु इस ज्ञान से किसी भी प्रकार का आध्यात्मिक, सांस्कृतिक या नैतिक विकास परिलक्षित नहीं होता। वर्तमान युग के लोगों में श्रद्धा समर्पण की आत्यंतिक कमी है और इन समस्याओं का निराकरण वंदन आवश्यक के रहस्य एवं गांभीर्य को समझकर हो सकता है।
Management या प्रबंधन के क्षेत्र में यदि वंदन की आवश्यकता पर विचार किया जाए तो इसके द्वारा भाव प्रबंधन, परिवार प्रबन्धन, समाज प्रबन्धन, क्रोध प्रबन्धन, मान प्रबन्धन आदि में सहायता प्राप्त हो सकती है।