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210... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
पालन नहीं करने वाला, ईर्यापथ आदि में लगे हुए दोषों से मुक्त होने के लिए ईर्यापथिक प्रतिक्रमण नहीं करने वाला, कृत दोषों की सम्यक् आलोचना करके प्रायश्चित्त ग्रहण नहीं करने वाला, स्वयं के लिए कृत्याकृत्य का विचार नहीं करने वाला, गुर्वाज्ञा का यथावत अनुसरण नहीं करने वाला ऐसे अनेक तरह से संयम में दूषण लगाने वाला मुनि देश अवसन्न कहलाता है।
3. कुशील - कुत्सित चारित्र का पालन करने वाला साधु कुशील कहलाता है। कुशील साधु तीन प्रकार के हैं- ज्ञान कुशील, दर्शन कुशील एवं चारित्र कुशील।
(i) ज्ञान कुशील - काल, विनय, बहुमान आदि अष्टविध ज्ञानाचार की विराधना करने वाला ज्ञान कुशील कहलाता है।
(ii) दर्शन कुशील - नि:शंकित, नि:कांक्षित आदि अष्टविध दर्शनाचार की विराधना करने वाला दर्शन कुशील है ।
(iii) चारित्र कुशील - 1. कौतुक कर्म 2. भूति कर्म 3. प्रश्नाप्रश्न 4. निमित्त 5. आजीविका 6. कल्ककुरूका 7. लक्षण 8. विद्या 9. मंत्रादि के प्रयोग से चारित्र को दूषित करने वाला, चारित्र कुशील है।
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कौतुककर्म - लोकप्रसिद्धि अर्जित करने के लिए या संतान प्राप्ति के लिए अनेक औषधियों से मिश्रित जलादि द्वारा स्त्रियों को स्नान कराना, उनके शरीर पर जड़ी-बूंटी आदि बांधना अथवा आश्चर्यजनक करतब दिखाना जैसेमुख में गोले निगल कर कान-नाक आदि से पुनः निकालना, मुँह से आग निकालना आदि कौतुक कर्म है।
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भूतिकर्म- ज्वर आदि रोग निवारण के लिए ताबीज, डोरे आदि बनाना, अभिमंत्रित भस्म आदि प्रदान करना भूतिकर्म है।
• प्रश्नाप्रश्न - प्रश्नकर्त्ता द्वारा पूछे गये या बिना पूछे गये प्रश्नों का कर्ण पिशाचिनी आदि विद्या द्वारा या मंत्राभिषिक्त घटिका द्वारा स्वप्न में समाधान करना, प्रश्नाप्रश्न है।
• निमित्त- भूत, भविष्य या वर्तमान विषयक लाभ-अलाभ आदि बताना निमित्त है। आजीवक- जाति आदि के द्वारा आजीविका चलाने वाला साधु । जैसे• जाति आजीवक - श्रीमाल जाति के सेठ को देखकर कहना कि मैं भी श्रीमाल जाति का हूँ, यह सुनकर सेठ द्वारा साधु को अपनी जाति का