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________________ वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण ...209 जिन शासन में पाँच पुरुष अवन्दनीय कहे गये हैं। आवश्यक टीकानुसार वह निरूपण अधोलिखित है 1. पासत्थ- इस शब्द के संस्कृत में दो रूप बनते हैं पार्श्वस्थ और पाशस्थ। ___ (i) पार्श्वस्थ- जो साधु ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और प्रवचन में सम्यक उपयोग नहीं रखता है तथा ज्ञानादि के समीप रहकर भी उन्हें अपनाता नहीं है, वह पार्श्वस्थ कहलाता है। (ii) पाशत्थ- कर्म बन्धन के हेतुभूत मिथ्यात्व आदि का आचरण करने वाला, पाशस्थ कहलाता है। पार्श्वस्थ साधु भी दो प्रकार के होते हैं- (i) सर्व पार्श्वस्थ (ii) देश पार्श्वस्थ। ____ (i) सर्व पार्श्वस्थ- ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप रत्नत्रय की आराधना नहीं करने वाला, केवल वेषधारी साधु सर्वपार्श्वस्थ कहा जाता है। (ii) देश पार्श्वस्थ- निष्कारण शय्यातरपिंड, राजपिंड, नित्यपिंड, अग्रपिण्ड और सम्मुख लाये हुए आहार का भोजन करने वाला देश पार्श्वस्थ कहा जाता है। 2. ओसन्न (अवसन्न)- मुनि सम्बन्धी दस प्रकार की सामाचारी पालन में प्रमाद करने वाला, अवसन्न कहलाता है। अवसन्न के दो प्रकार हैं- (i) सर्व अवसन्न (ii) देश अवसन्न। ____ (i) सर्व अवसन्न- एक पक्ष के अन्तराल में पीठ, फलक आदि के बन्धन खोलकर प्रतिलेखन नहीं करने वाला, बार-बार सोने के लिए संस्तारक बिछाये रखने वाला, स्थापना (साधु के निमित्त रखा हुआ) और प्राभृतिका (साधु के निमित्त विवाहादि के प्रसंग को आगे-पीछे करके बनाया हुआ, ऐसे) दोष से दूषित आहार ग्रहण करने वाला, सर्व अवसन्न कहलाता है। (ii) देश अवसन्न- प्रतिक्रमण नहीं करने वाला, अविधिपूर्वक, हीनाधिक दोषयुक्त या असमय में प्रतिक्रमण करने वाला, स्वाध्याय नहीं करने वाला या असमय में स्वाध्याय करने वाला, प्रतिलेखन नहीं करने वाला या असावधानी से प्रतिलेखन करने वाला, भिक्षाचर्या नहीं करने वाला या अनुपयोगपूर्वक भिक्षाचर्या करने वाला, साधुमंडली में बैठकर भोजन नहीं करने वाला, मांडली के संयोजनादि पाँच दोषों का सेवन करने वाला, आवस्सही आदि सामाचारी का
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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