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206...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
7. संवर के समय- नमुक्कारसी, पौरुषी, एकासना, आयंबिल, उपवास ___आदि कोई भी प्रत्याख्यान ग्रहण करना हो, तो पहले गुरुवंदन करना चाहिए। 8. अनशन अथवा संलेखना के समय- अनशन आदि विशिष्ट साधना
को स्वीकार करने से पूर्व गुरु को द्वादशावर्त वन्दन करना चाहिए।
उपर्युक्त आठ कारणों में से कुछ वन्दन नियत कालिक हैं और कुछ अनियतकालिक। पूर्वाह्न सम्बन्धी प्रतिक्रमण के चार और स्वाध्याय के तीन वंदन तथा अपराह्न सम्बन्धी प्रतिक्रमण के चार और स्वाध्याय के तीन वंदनकुल 14 ध्रुववंदन प्रतिदिन करने योग्य हैं। शेष कायोत्सर्ग आदि से सम्बन्धित वंदन तत्सम्बन्धी प्रयोजन उपस्थित होने पर ही करने योग्य होने से अध्रुव वंदन हैं।
दिगम्बर आचार्यों ने कृतिकर्म के पाँच कारण प्रदर्शित किये हैं
1. आलोचना के समय अथवा छह आवश्यक रूप क्रियाओं के समय 2. किसी तरह की जिज्ञासा का निवारण या प्रश्नादि करते समय, 3. जिन प्रतिमा का पूजन करते समय 4. स्वाध्याय करते समय 5. अपराध भाव से विमुक्त होने के लिए आचार्यादि को वन्दन करना चाहिए।70
__ स्पष्टार्थ है कि गुणवंत को पंचांगप्रणिपात आदि सामान्य वंदन अनेक बार किया जा सकता है, परन्तु कृतिकर्म निर्दिष्ट स्थितियों में ही करना चाहिए। कृतिकर्म कितनी बार करना चाहिए?
सुज्ञ पाठकों के लिए यह निश्चित रूप से मननीय है कि द्वादशावर्त रूप कृतिकर्म कब, कितनी बार करना चाहिए? श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों परम्पराओं के साहित्य में दिन सम्बन्धी 14 बार कृतिकर्म करने का उल्लेख है, किन्तु दिगम्बर आचार्यों ने रात्रि में भी 14 कृतिकर्म करने का निर्देश किया है। इस प्रकार श्वेताम्बर के अनुसार 14 बार और दिगम्बर के अनुसार 14 + 14 = 28 बार कृतिकर्म करना चाहिए। कृतिकर्म कब करना चाहिए, इस विषय में दोनों परम्पराओं के मन्तव्यानुसार प्रतिक्रमण काल में चार और स्वाध्याय काल में तीन, ऐसे पूर्वाह्न में सात और अपराह्न में सात कुल 14 कृतिकर्म हो जाते हैं। विधि प्रयोग की दृष्टि से दोनों में अन्तर है।71 प्रतिक्रमण में चार कृतिकर्म कैसे?
श्वेताम्बर परम्परा में तृतीय आवश्यक में प्रवेश करने से पूर्व, गुरु से क्षमायाचना करने से पूर्व, पाँचवें कायोत्सर्ग आवश्यक में प्रवेश करने से पूर्व