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190...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में 22) मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति आदरूं- ये तीन बोल कहें।
12. पक्खोडा- पुनः पूर्ववत मुखवस्त्रिका का बायें हाथ पर स्पर्श करवाते हुए कोहनी से हथेली तक तीन बार प्रमार्जना करें। उस समय (23 से 25) मनोदंड, वचनदंड, कायदंड परिहरूं- ये तीन बोल मन में कहें।42
इस प्रकार मुखवस्त्रिका प्रतिलेखना के समय 1 दृष्टि प्रतिलेखन + 6 पुरिम + 9 अक्खोडा + 9 पक्खोडा = 25 बोल से प्रमार्जना होती है। अंत: मुखवस्त्रिका प्रतिलेखना के 25 स्थान हैं।43
शरीर प्रतिलेखना- मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना शरीर प्रतिलेखना सहित होती है। प्रवचनसारोद्धार एवं गुरुवंदणभाष्य के अनुसार शरीर प्रतिलेखना की विधि इस प्रकार है44
1. बायां हाथ- उकडु आसन में बैठकर दायें हाथ की अंगुलियों के बीच मुखवस्त्रिका को (वधूटक पूर्वक) पकड़ें। फिर बायें हाथ का प्रतिलेखन- हास्य कहते हुए बीच में, रति कहते हुए दायीं तरफ एवं अरति परिहरूं कहते हुए बायीं तरफ करें।
2. दायां हाथ- पुन: पूर्ववत आसन में बैठे हुए बायें हाथ की अंगुलियों के बीच मुखवस्त्रिका को पकड़ें। फिर दायें हाथ का प्रतिलेखन- भय कहते हुए मध्य में, शोक कहते हुए दायीं तरफ एवं दुगुंछा परिहरूं कहते हुए बायीं तरफ करें।
3. मस्तक- पुनः पूर्ववत मुद्रा में मुखवस्त्रिका के दोनों किनारों को दोनों हाथों से पकड़कर, ललाट की प्रतिलेखना- कृष्ण लेश्या कहते हुए बीच में, नील लेश्या कहते हुए दायीं तरफ एवं कापोत लेश्या परिहरूं कहते हुए बायीं तरफ करें। ____4. मुख- पुन: पूर्ववत मुद्रा में मुखवस्त्रिका के दोनों किनारों को दोनों हाथों में पकड़कर, मुख की प्रतिलेखना- ऋद्धि गारव 5 कहते हुए मध्य में, रस गारव कहते हुए दायीं तरफ एवं साता गारव परिहरु कहते हुए बायीं तरफ करें।
5. हृदय- तदनन्तर पूर्ववत मुद्रा में मुखवस्त्रिका के दोनों किनारों को दोनों हाथों से पकड़कर, हृदय की प्रतिलेखना- माया शल्य कहते हुए मध्य भाग में, निदान शल्य कहते हुए दायीं तरफ एवं मिथ्यादर्शन शल्य परिहरूं